Sunday 23 August 2015

क्या एक पी.एच.डी (phd) किये हुये व्यक्ति की बातो को, हिंदी पढ़ने वाला आठवी कक्षा का बालक समझ सकता है.......?

क्या एक पी.एच.डी (phd) किये हुये व्यक्ति की बातो को, हिंदी पढ़ने वाला आठवी कक्षा का बालक समझ सकता है.......?.......नही.

भगवान जिस स्तर पर बोल रहे है, उसी स्तर पर खड़ा, कोई महापुरूष ही बता सकता है,कि श्रिकृष्ण के मन में क्या भाव थे.....शब्द और भाव-भंगिमा तथा आवाज़ की लय ही,मनोगत भावो को पूर्णता प्रादान करती है......फिर गीता-ज्ञान तो क्रियात्मक है, कोई शब्दजाल नही......जो पथिक उस पथ पर चला हो, वही महापुरूष हमें,उस पथ का मार्गदर्शन देने का अधिकारी है......बाते करने से खीर नही बनती, साजो-सामान, चाहिये....विधी ज्ञान चाहिये....अग्नि-समय और निरिक्षण चाहिये
जब भी कोई अतिमानसिक शक्ति इस धरती पर कल्यान के लिये अवतरित होती है..तो देवी-देवता भी उसे पहचान नही पाते..उल्टा उसका विरोध ही करते है.तो साधारण आदमी की विसात कहां...श्रीराम की पहचान के लिये माता पार्वती को जाना पड़ा...श्री कृष्ण को..ब्रह्मा..इन्द्र भी पहचान नही पाय...ऐसे ही आज मेरे परम पूज्य गुरूदेव जी को पहचानने की सामर्थ्य संसार के लोगो में नही है...उनके जाते ही सभी फिर लकीर पीटते रह जायेंगे.....मनुष्य के पूर्ण विकास का नाम ही ईश्वर है...इसी सनातन सत्य को दिखाने की गुरूदेव जी चेष्टा कर रहे है....सिद्धयोग से आसान कोई और रास्ता नही है
क्योंकि यह स्वचलित...स्वघटित होता है..इसमे मानवीय प्रयास निर्रथक है.




No comments:

Post a Comment