Monday, 24 August 2015

जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं,


एक जाने-माने व्यक्ति ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की.
हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,”
ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?”
हाथ उठना शुरू
हो गए..

फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर उससे
पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी मेंचिमोड़ना शुरू कर दिया. और फिर उसने पूछा,”
कौन है जो अब भी यह नोट
लेना चाहता है?”

अभी भी लोगों के हाथ उठने
शुरू हो गए.

“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये
कर दूं ? “ और
उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह
बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.

“ क्या अभी भी कोई है जो इसे
लेना चाहता है?”.
और एक बार फिर हाथ उठने शुरू हो गए.


“ दोस्तों , आप लोगों ने आज एक बहुतमहत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप
इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.

जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं.
हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है.लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य मेंजो हो जाए , आपका मूल्य कम
नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.

कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये.
याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.”



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You as body, mind or soul ...


You as body, mind or soul are a dream. But what you really are is pure existence, knowledge, bliss. You are the God of this universe. You are creating this whole universe and drawing it in. To gain the Infinite, the miserable little prison individuality must go.... Follow the heart. A pure heart seeks beyond the intellect. It gets inspired.... Within you is the real happiness. Within you is the mighty ocean of nectar divine. Seek it within you. Feel it. Feel it. It is here, the self. It is not the body, the mind, the intellect. All these are simply manifestations. Above all these you ARE. You appear as the smiling flower, as the twinkling stars. What is there in the world which can make you desire anything?
The practice of the Siddha Yoga means keeping the mind always in the state of equanimity,No One Can Do Siddha Yoga, It Has To Happen.


 

Sunday, 23 August 2015

एक बार एक हंस और हंसिनी...

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!
हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??
यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !
भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।
वह जोर से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।
ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??
ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।
सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा
पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??
अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!
उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।
दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।
कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।
पंचलोग भी आ गये!
बोले- भाई किस बात का विवाद है ??
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!
लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।
इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!
फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!
यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!
रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!
हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??
पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?
उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!
लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!
शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!
"कहानी" अच्छी लगे तो आगे भी बढ़ा दें...


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जब किसी जरूरतमंद की आवाज़ तुम तक पहुंचे तो ...

जब किसी जरूरतमंद की आवाज़ तुम तक पहुंचे तो परमात्मा का शुक्र अदा करना,
की उसने अपने बंदे की मदद के लिए तुम्हें चुना है वरना वो तो सब के लिए अकेला ही काफ़ी है।


धार्मिक जगत में दो तरह के लोग है,एक भूतकाल का गुणगान करने वाले,धर्मार्थी लोग...दूसरे रहस्यवादी,जिनका सब ज्ञान 
अनुभव जनित होता है,रहस्यवाद को अपना कर ही कुछ जाना और समझा जा सकता है, धर्मार्थी लोग लोग भजन गाना,मन्दिरो मे घन्टिया बजाने,आरतिया गाने को ही धर्म मान बैठे है,जो कि मूर्खता की पराकाष्टा है,..वर्तमान में जीना,और भविष्य के लिये, रहस्यवादी साधना ही धर्म का मौलिक रूप है, स्वयम को जानना ही रहस्यवाद की प्रथम अवस्था है,....सभी प्रबुध्द ,सूझवान और समझदार लोगौ को आमंञण..सिध्दयोगा,एक कल्पतरू का पेड़ है,भावना के अनुसार क्रियाशील होता है,आऔ इसका अभ्यास करे.........सिद्ध योग का अभ्यास किया नही जा सकता , यह अपने आप होता है,सिद्ध योग के अभ्यास का मतलब है,हमेशा, धैर्य , समभाव, कृतज्ञता, और आनंद के राज्य में रहना




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यह उन दिनों की बात है, जबस्वामी विवेकानंद : spiritual views of स्वामी विवेकानंद

यह उन दिनों की बात है, जबस्वामी विवेकानंदअमेरिका में थे। वहां कई महत्वपूर्ण जगहों पर उन्होंने व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यानों का वहां जबर्दस्त असर हुआ। लोग स्वामी जी को सुनने और उनसे धर्म के विषय में अधिक अधिक से जानने को उत्सुक हो उठे। उनके धर्म संबंधी विचारों से प्रभावित होकर एक दिन एक अमेरिकी प्रोफेसर उनके पास पहुंचे। उन्होंने स्वामी जी को प्रणाम कर कहा, ‘स्वामी जी, आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें।’

इस पर स्वामी जी बोले, ‘मैं यहां धर्म प्रचार के लिए आया हूं न कि धर्म परिवर्तन के लिए। मैं अमेरिकी धर्म-प्रचारकों को यह संदेश देने आया हूं कि वे धर्म परिवर्तन के अभियान को बंद कर प्रत्येक धर्म के लोगों को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करें। यही धर्म की सार्थकता है। यही सभी धर्मों का मकसद भी है। हिंदू संस्कृति विश्व बंधुत्व का संदेश देती है, मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानती है।’ वह प्रोफेसर उनकी बातों से अभिभूत हो गए और बोले, ‘स्वामी जी, कृपया इस बारे में और विस्तार से कहिए।’


प्रोफेसर की यह बात सुनकर स्वामी जी ने कहा, ‘महाशय, इस पृथ्वी पर सबसे पहले मानव का आगमन हुआ था। उस समय कहीं कोई धर्म, जाति या भाषा न थी। मानव ने अपनी सुविधानुसार अपनी-अपनी भाषाओं, धर्म तथा जाति का निर्माण किया और अपने मुख्य उद्देश्य से भटक गया। यही कारण है कि समाज में तरह-तरह की विसंगतियां आ गई हैं। लोग आपस में विभाजित नजर आते हैं। इसलिए मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूं कि तुम अपना धर्म पालन करते हुए अच्छे ईसाई बनो। हर धर्म का सार मानवता के गुणों को विकसित करने में है इसलिए तुम भारत के ऋषियों-मुनियों के शाश्वत संदेशों का लाभ उठाओ और उन्हें अपने जीवन में उतारो।’ वह प्रोफेसर मंत्रमुग्ध यह सब सुन रहे थे। स्वामी जी के प्रति उनकी आस्था और बढ़ गई।




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विवेकानंद कहते थे में जब छोटे-छोटे बच्चों को : Spiritual views of Swami Vivekanand

लोग अक्सर भगवान के दर्शन करने अनेकों तीरथ जाते हैं बड़े-बड़े कष्ट झेलकर मंदिरों में जाते हैं कई व्रत-उपवास करते हैं
लेकिन उन्हे परम शांति नही मिल पाती है आत्म-संतुष्टि नही मिल पाती है 

विवेकानंद कहते थे में जब छोटे-छोटे बच्चों को मंदिरों में देखता हूँ तो मुझे बहुत खुशी होती है लेकिन जब में बूढ़ों को मंदिर जाते देखता हूँ तो मुझे बड़ा दुख होता है कि वे इतनी बड़ी उम्र तक भी प्रभु को नही जान पाए प्रभु का जो सच्चा नाम है वह नही जान पाए
भगवान के सभी नाम गुणवाचक है लेकिन जो प्रभु का सच्चा नाम है वो गुणवाचक नही जीभ के अंतर्गत नही आता है और वो नाम केवल समय के सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं
उसी में परम शांति है जिससे मान में शांति होगी तभी तो बाहर भी शांति होगी और तभी पूरी दुनिया मैं शांति होगी
और सच्चे ज्ञान को जाने बिना वे इधर-उधर भटकते हैं देखा-देखी भक्ति करते हैं परंतु इससे कल्याण नही होगा
वह नरक से नही बच सकता है
उस परम ज्ञान को केवल सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं यही ज्ञान महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को दिया था
अध्यात्म का अर्थ है मनुष्य की आत्मा को परमात्मा से जोड़ना........
आऔ दिव्य दृष्टि. प्राप्त करे,..ईश्वर, प्रतयक्ष अनुभूति और साक्षात्कार का विषय है ... कथा, कहानी सुनने सुनाने या बहस करने का नहीं है....सिद्ध योग का अभ्यास किया नही जा सकता , यह अपने आप होता है,सिद्ध योग के अभ्यास का मतलब है,हमेशा, धैर्य , समभाव और आनंद के राज्य में रहना.



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“ The 'Sagun Sakaar' and 'Nirgun Nirakar' have been attained by the people

“ The 'Sagun Sakaar' and 'Nirgun Nirakar' have been attained by the people, but separately,
but both these 'Siddhis' have not been attained simultaneously, in a single body, in the same life.
My Photo induces meditation, because I have attained both the 'Siddhis', 'Sagun Saakar' and 'Nirgun Nirakaar'. In 1969 'Nirgun Nirakar'(Gayatri) Siddhi, and in 1984 'Sagun Sakar'(Krishna) Siddhi.
- Sadgurudev Shri Ramlal Ji Siyag.
Spiritual Meditation on Sadgurudev Siyag can help you realise God within yourself.
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 +91 7533006009


When the guru creates this awakening you experience samadhi : Instant Shaktipat: Kundalini Awakening

Awakening is instant, but it is only a glimpse, not a permanent event. When the guru creates this awakening you experience samadhi . You can practise all forms of pranayama and all asanas , mudras and bandhas without having learned them or prepared for them. All the mantras are revealed to you and you know the scriptures from within. Changes take place in the physical body in an instant. The skin becomes very soft, the eyes glow and the body emits a particular aroma which is neither agreeable nor disagreeable.
This shaktipat is conducted in the physical presence or from a distance. It can be transmitted by touch, by a handkerchief, a mala, a flower, a fruit or anything edible, depending on the system the guru has mastered. It can even be transmitted by letter, telegram or telephone.
The practice of the Siddha Yoga means keeping the mind always in the state of equanimity,No One Can Do Siddha Yoga, It Has To Happen



क्या एक पी.एच.डी (phd) किये हुये व्यक्ति की बातो को, हिंदी पढ़ने वाला आठवी कक्षा का बालक समझ सकता है.......?

क्या एक पी.एच.डी (phd) किये हुये व्यक्ति की बातो को, हिंदी पढ़ने वाला आठवी कक्षा का बालक समझ सकता है.......?.......नही.

भगवान जिस स्तर पर बोल रहे है, उसी स्तर पर खड़ा, कोई महापुरूष ही बता सकता है,कि श्रिकृष्ण के मन में क्या भाव थे.....शब्द और भाव-भंगिमा तथा आवाज़ की लय ही,मनोगत भावो को पूर्णता प्रादान करती है......फिर गीता-ज्ञान तो क्रियात्मक है, कोई शब्दजाल नही......जो पथिक उस पथ पर चला हो, वही महापुरूष हमें,उस पथ का मार्गदर्शन देने का अधिकारी है......बाते करने से खीर नही बनती, साजो-सामान, चाहिये....विधी ज्ञान चाहिये....अग्नि-समय और निरिक्षण चाहिये
जब भी कोई अतिमानसिक शक्ति इस धरती पर कल्यान के लिये अवतरित होती है..तो देवी-देवता भी उसे पहचान नही पाते..उल्टा उसका विरोध ही करते है.तो साधारण आदमी की विसात कहां...श्रीराम की पहचान के लिये माता पार्वती को जाना पड़ा...श्री कृष्ण को..ब्रह्मा..इन्द्र भी पहचान नही पाय...ऐसे ही आज मेरे परम पूज्य गुरूदेव जी को पहचानने की सामर्थ्य संसार के लोगो में नही है...उनके जाते ही सभी फिर लकीर पीटते रह जायेंगे.....मनुष्य के पूर्ण विकास का नाम ही ईश्वर है...इसी सनातन सत्य को दिखाने की गुरूदेव जी चेष्टा कर रहे है....सिद्धयोग से आसान कोई और रास्ता नही है
क्योंकि यह स्वचलित...स्वघटित होता है..इसमे मानवीय प्रयास निर्रथक है.




Shaktipat: TRANSMISSON OF SPRITUAL POWER


Shaktipat
TRANSMISSON OF SPRITUAL POWER

There is a process by which a real spiritual teacher (Sat Guru) imparts his spiritual power to his disciple. The process is known as ‘Shaktipat’ or transmission of spiritual power. The teacher who is possessed of this power of transmission can give this knowledge of truth or the knowledge of the way of union with the Divine to a deserving disciple in an instant without any effort whatsoever. There are many references in the spiritual books to the effect that a man on whom the real Guru lets fall his glance or on whose head he places his lotus hand be he however small and insignificant a being is at once raised to a status equal to the Lord of the Universe himself.

The principle objective of yoga is to attain Samadhi in which state all modifications of the mind are stilled and sup¬pressed. To achieve this object one has to go through the eightfold process of yoga, which is very difficult to practice without the guidance of a qualified Guru.
 A slight error in this Sadhan may result in injury to the practitioner. This difficulty prevents many an ardent seeker from pursuing a path of yoga which comprises a long course of Asan, Pranayam, the practice of various Mudras, the rousing of the Kundalini power and thereafter opening the gateway of the central nerve within the spinal cord and directing the Prana to an upward course towards the cerebral region. Now, the whole of this process can be brought about almost without any effort by transmission of power (Shaktipat).
The effect of transmission is immediate (i.e. the rousing Of the Kundalini Power) on the disciple who has control over his mind and senses and is devoted to the Lord and possesses an unswerving faith in the Guru and completely surrenders to the Guru. The one thing needed above all others is sincere service of the Guru and gaining his favour.
The fact is that the awakened Divine Power (Kundalini) herself gets all things done without effort (Asan, Pranayam mudra etc) according to the needs and demands of the case for the growth of the Sadhak (Spiritual aspirant).

The type of spiritual aspirants who pin their faith on personal effort is unlikely to yield to, and solely depend on a po.wer of their personality. But the way of the transmission of power (Shaktipat) is a way of surrender and dependence. The Sadhak initiated into it has no thought of the progress he would make during the present term of life. He is happy to be led where the Divine Power leads him and the Divine Power protects him from all disaster and leads him to his spiritual destiny. For those who aspire after yoga, under modern con¬ditions there is no easier method to follow than the process of Shaktipat. Whosoever, therefore, come in contact with a Mahatma who is adept in Shaktipat should not loose the opportunity of gaining his favour and thus realizing the object of his life. There is no easier, no more effective Sadhan (Spiritual practice) than Shaktipat, always lifting the Sadhak (Spiritual aspirant) above griefs and sorrows, above the wrong activities of the little and perverted mind and bringing him Supreme Peace.

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Saturday, 22 August 2015

कुण्डलिनी क्या है? इसकी शक्ति क्या है, इसकी साधना, इसका उद्देश्य क्या है : कुण्डलिनी-जागरण


कुण्डलिनी क्या है? इसकी शक्ति क्या है, इसकी
साधना, इसका उद्देश्य क्या है,
कुण्डलिनी-जागरण
कैसे होते है और मनुष्य पर इस जागरण का क्या प्रभाव
पड़ता है?--आदिआदि
ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनके उत्तर
वांछित है।
कुण्डलिनी साधना मनुष्य के आतंरिक रूपांतरण और
जागरण की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
कुण्डलिनी जागरण का एक मात्र उद्देश्य है कि
मनुष्य अपने आपको पहचाने, अपने जीवन को गहराई से
समझे।
यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो मनुष्य को
स्वयं अपने ही अस्तित्व के साथ करनी पड़ती है।
प्रत्येक मनुष्य के जानेंद्रिय के नीचे जहाँ से रीढ़ की
हड्डी शुरू होती है, वहां एक चने के बराबर गड्ढा है
जिसे कुण्ड कहते हैं। वही कुण्ड ऊर्जा का केंद्र है। इस
कुण्ड का आकार त्रिकोण की तरह है । यहीं पर
नाड़ियों का गुच्छा है जिसे योग में कंद कहते हैं।
इसी पर कुण्डलिनी सर्पिणी की तरह 3.5 चक्र की
कुंडली मार कर , नीचे के ओर मुख करके, युगों-युगों से
बेखबर होकर गहरी नींद में सो रही है। जबतक यह सोई
हुई है अज्ञान का मूल बनी हुई है।
कुण्ड में स्थित होने या कुण्डली के रूप के कारण ही इसे कुण्डलिनी
पुकारा जाता है।
सर्प के रूप के कारण
सर्पिणी या चिति भी कहते हैं।
मनुष्य की रीढ़ की हड्डी भीतर से पोली है।उसके भीतर एक नाड़ी है जिसे योग में
सुषुम्ना नाड़ी कहा जाता है। इसी के भीतर दो और
नाड़ियाँ हैं--इड़ा और पिंगला, उसी प्रकार से जैसे
बिजली के किसी मोटे तार के भीतर दो अलग अलग
पतले तार होते हैं- जिनमें positive और negative विद्युत धाराएं प्रवाहित होती हैं।
सुषुम्ना नाड़ी बिलकुल
खाली नहीं है , वहां शून्य है, इसीलिए उसे शून्य नाड़ी
भी कहते है।
शून्य अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए होता
है।
इड़ा और पिंगला नाड़ियों में क्रमशः मन और
प्राण का प्रवाह है। इसलिये इड़ा को मनोवहा और
पिंगला को प्राणवहा नाड़ी कहते हैं।
कुण्ड के एक कोने पर इड़ा,
एक पर पिंगला और
एक पर सुषुम्ना की ग्रन्थियाँ हैं। हमारे शरीर का यह एक
महत्वपूर्ण स्थान है। जीवनी शक्ति का फैलाव
सम्पूर्ण शरीर में इसी केंद्र से होता है। इसे मूलाधार
चक्र कहते हैं। त्रिकोण योनि का प्रतीक है, इसलिए
तांत्रिक इसे योनि चक्र भी कहते हैं।
यहीं से तीनो
नाड़ियाँ एक साथ मिलकर मेरुदंड में से होकर ऊपर की
ओर चली गई हैं।
ऊपर जा कर तीनों अलग अलग हो गई
हैं।
इड़ा बाई कनपटी और पिंगला दाई कनपटी से
होकर आज्ञा चक्र में मिल कर और तीनों प्रकार के
मस्तिष्कों को पार कर ब्रह्म रंध्र से मिल गई है।
इसी प्रकार सुषुम्ना नाड़ी भी खोपड़ी के पीछे से होकर
ब्रह्म रंध्र से मिल गई है। विचार की तरंगें इसी ब्रह्म
रंध्र के मार्ग से सुषुम्ना में प्रवेश कर तीसरे मस्तिष्क
मेंदूला ablongata में पहुंचती हैं।
हमारे शरीर में ज्ञान तंतुओं के दो भाग हैं।
पहला भाग मस्तिष्क और मेरुदंड के भीतर है और दूसरा भाग छाती,पेट और पेड़ू के भीतर है।
पहले भाग को सेरिबो
स्पाइनल सिस्टम कहते हैं और दूसरे भाग को
सिम्पैथेटिक सिस्टम कहते हैं। मनुष्य के भीतर
इच्छाओं,भावनाओं का जन्म और व्यापार पहले भाग
में और उसी प्रकार बुद्धि,पोषण,पाचन व्यापार दूसरे
भाग में चलता रहता है।
शब्द,रस,रूप,गंध और स्पर्श की
क्रिया व्यापार मस्तिष्क और मेरुदंड के ज्ञान तंतु
करते हैं।विचार भी यहीं पैदा होते हैं।
मस्तिष्क के तीन भाग हैं--मुख्य मस्तिष्क, गौण
मस्तिष्क और अधो स्थित मस्तिष्क। मुख्य मस्तिष्क
को सेरिब्रम ,गौण मस्तिष्क को सेरिबेलम कहते हैं और
अधो स्थित मस्तिष्क को मेडुला ablongata कहते हैं।
यह मेरुदंड के ऊपरी सिरे पर स्थित है। इसका आकर
मुर्गी के अंडे के बराबर होता है। उसमें एक ऐसा द्रव
भरा होता है जो अज्ञात है।
medical science
अभीतक इस द्रव का पता नहीं लगा पाई है।
योगी इसे सहस्त्रार कहते हैं। इसके ज्ञान तंतुओं का एक
सिरा सुषुम्ना नाडी के मुख से मिला है और दूसरा
ब्रह्म रंध्र में निकल रहता है जहाँ पर चोटी रखने की
प्रथा है।
उस स्थान पर सुई के नोक के बराबर एक
छिद्र है जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। ब्रह्म रंध्र के माध्यम
से ब्रह्माण्ड के बिखरे अबक विचारों को व्यक्ति
ग्रहण करता रहता है।
समर्थ सिद्धगुरु के अनुग्रह से सिद्धयोग ध्यान की
क्रियात्मक प्रक्रिया के माध्यम से सबसे पहले कुंडलिनी
का जागरण होता है, फिर उसका उत्थान होता है।
इसके बाद क्रम से चक्रों का भेदन होता हैं और अंत में
आज्ञा चक्र में अपने सद्गुरु के चिन्मय स्वरुप का दर्शन
होता है।
अंत में सहस्त्रार स्थित शिव से शक्ति का
सामरस्य महा मिलन होता है।
समर्थ सिद्धगुरु श्री रामलालजी सियाग के फोटो का आज्ञाचक्र पर ध्यान करने से कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है।
यह जाग्रत कुण्डलिनी साधक का मन, बुद्धि व प्राण अपने अधीन कर उसे स्वतः यौगिक क्रियाएँ करवाती है।
कुण्डलिनी ऊपर उठकर सुषुम्मा नाडी में प्रवेश कर छ: चक्रों व तीन ग्रंथियों का भेदन कर सहस्रार की ओर बढती है।
प्रत्येक चक्र भेदन पर अलौकिक शक्तियाँ प्रकट होती हैl


Siddha Yoga In Short: Universal yoga for Anyone ,Anytime,Any duration,Anywhere,Anyplace,Any age,Any disease,Any stress

üAnyone                 any religion, creed, race, country 
üAnytime               morning, noon, evening, night
üAny duration       5, 10, 12, 15, 30 minutes 
üAnywhere            office, home, bus, train
üAnyplace             on chair, bed, floor, sofa
üAny age                child, young, middle-aged, old
üAny disease         physical, mental and freedom from any kind of addiction
üAny stress            related to family, business, work



How to Meditate : Easiest method of meditation: Easiest Yoga : Free yoga and meditation

Sit in a comfortable position.
You can sit cross-legged on the floor or sit on a chair  to meditate.
Look at Gurudev's picture for a minute until you can remember the image.
Then close your eyes and pray silently to Gurudev, “Please help me meditate for 20 minutes.”

Think of Gurudev's image at the place between your eyebrows also known as the third eye or agnya chakra.
While thinking of the image, silently chant the name of any divine or spiritual entity you believe in such as Gurudev, Krishna, Jesus, Allah, Holy Father, Om etc.
During meditation, you may experience certain automatic yogic postures or movement of your limbs. Swaying, nodding of head etc. Do not panic or worry.
These kriyas (exercises) are needed to cleanse internally and ready you for your onward spiritual journey.





How do students benefit from GSSY? meditation sharpens focus and concentration

GSSY meditation sharpens focus and concentration.
It makes the practitioner more dynamic.
It increases grasping and retention abilities.
Since GSSY sharpens intuition, the student can follow his instinct and find solutions to many difficult problems.

Makes students more judicious and helps them make very strong decisions.

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Difference Between Siddha Yoga and Other Kinds of Yogas

GSSY is ALWAYS free of charge.
In other yogas all exercise are done willfully through a classroom approach – The instructor performs and everyone follows.
In GSSY all yogic postures like bandh, aasanpranayam, khechri-mudra etc occur due to the awakening of the Kundalini.
In GSSY the practitioner does not need to change his lifestyle or diet in anyway.

The practitioner does not have to go for repeat sessions to Guru Siyag or any center.


Signs of the Awakened Kundalini

When the Kundalini awakens, the practitioner experiences involuntary body movements known as Kriyas.
The kriyas are in the form of aasan, bandh (locks) or pranayam (breathing exercises). The practioner may also experience increase in body heat, shivering, shaking or may see lights or colors.
  The kriyas have a healing or curing effect on the body.                                                                   
Only that part of the body experiences kriya which is ailing.
For instance if your shoulder hurts, only the shoulder will experience kriyas and through these will be healed.
Kriyasoccur only during meditation. 




Freedom from Stress : yoga : meditation

80 per cent of diseases afflicting the human body are caused by stress.
GSSY heightens the practitioner’s intuition and gives him knowledge of future events.
This way the practitioner is prepared for various changes in his life.

It also gives him knowledge of existence and the purpose of life.


Freedom from Addictions: yoga : meditation

Addictions too are a kind of blockage that prevent the practitioner from progressing on his spiritual journey.
In GSSY, unlike other forms of yoga, you don’t have to give up using the substance, the substance will give you up.
GSSY goes to the root of the problem by destroying the desire to consume a substance.

Practitioner does not experience any withdrawal symptoms.


How are diseases healed or cured by Siddha Yoga

      When the Kundalini awakens, it rises along the spinal column.
As it rises, it clears all blockages that lie its path. This can be understood with an example from our daily life: When water is sprayed on the floor with a great force, it clears all the garbage that lies in its path.In the same way, the Kundalinitoo clears all the blockages in its path such as Cancer, AIDS, Arthritis etc.


Siddha Yoga : meditation-based yoga : kundalini yoga :kundalini awakening

  Guru Siyag’s Siddha Yoga (GSSY) is a purely meditation-based yoga.
The practice of GSSY awakens  the Kundalini.
The Kundalini is a female energy force that lies dormant at the base of the spinal column in every human body.
Awakening of the Kundalini through GSSY brings about three major benefits: Healing or curing physical diseases and freedom from addiction and stress.