Tuesday, 8 December 2015

Guru Siyag's Speech in Hindi/ in English : Guru Siyag's Siddha Yoga Pre Mantra Diksha Speech : गुरु सियाग की स्पीच(मंत्र से पहले गुरुदेव की स्पीच)

गुरु सियाग की स्पीच (in Hindi)
मंत्र से पहले गुरुदेव की स्पीच
मैं पहले आपको दार्शनिक पक्ष बता दूं क्यों कि धर्म के नाम से आज तक ये परिवर्तन नहीं आया है ये भी सच्चाई है. अब धर्मगुरु के माध्यम से असाध्य रोग ठीक हो रहे हैं तो ये दुनिया वाले, विज्ञान वाले तो आश्चर्य करेंगे ही करेंगे. कलियुग के कारन से धर्म पतन के काल से गुजरता हुआ आ रहा है पर पतन की भी एक सीमा होती है, जब नीचे गिरने को कोई प्लेन नहीं तो फिर उत्थान शुरू हो जाता है. सृष्टी का उत्थान-पतन होता आया है तो हमारा भी एक उत्थान शुरू हो गया है. ये धर्म विश्व-धर्म होगा. केवल उपदेशात्मक ढंग से कथा वाचने से दुनिया मानती तो पहले ही मान जाती. 
तो योग की बड़ी चर्चा है, कुण्डलिनी जागरण की बड़ी चर्चा है. पश्चिम मान चुका है कि धन-बल और जन-बल से तो हमने जोर लगा लिया शांति हो नहीं सकती, अब केवल एक ही आत्म-बल से, कि अगर मानव के कुण्डलिनी जागृत हो जाये तो ही विश्व-शांति संभव है. ये शारीरिक कसरतें, योग के नाम से पूरी दुनियां में हो रही हैं. मैं यू.एस. गया, वहाँ शारीरिक कसरतें इसी को योग कहते हैं. 
पर भारतीय योग-दशर्न में जिस सिद्धयोग का वर्णन आता है उसका तो मूल उद्देश्य ही मुक्ति है, मोक्ष है भाई. भारतीय दर्शन रोग की बात ही नहीं करता. पातंजलि योग-दर्शन की दुहाई दी जाये, पातंजलि योग-दर्शन आप उठा कर देख लो, १९५ सूत्र हैं उसमें, उसमें कहीं भी रोग का वर्णन नहीं आएगा. कहीं नहीं है. वो तो जो संस्कार पूर्व-जन्म के, उसके बीज नष्ट करने की बात करता है. पातंजलि योग-दर्शन में ४ चेप्टर हैं. समाधि-पाद, साधन-पाद, विभूति-पाद और केवल्य-पाद. 
पहला चेप्टर समाधि-पाद, उसमें ऋषि ने दूसरे सूत्र में कहा है कि चित्त कि वृत्तियों का निरोध ही योग है. ये जो भाग रहा है रूकता नहीं है, जब तक चुप होकर बैठ नहीं जाएगा तब तक न ध्यान है न कोई योग है. और समाधि-पाद में ही २४ से लेकर २९ सूत्र तक स्पष्ट कहा है ऋषि ने, कि हरि-नाम के जप के बिना कोई योग सिद्धि नहीं, कोई मुक्ति नहीं. इस युग में केवल ईश्वर का नाम-जाप ही मोक्ष पहुंचाता है, मोक्ष पर पंहुचा देता है. अब मोक्ष तक विकसित जब आदमी होता है तो उसके सारे, जब तक कष्ट दूर नहीं होते तब तक मुक्ति नहीं हो सकती. 
तो ये एक ऐसा ज्ञान प्रकट हो रहा है मेरे जैसे साधारण आदमी के माध्यम से. मैं भी आपके जैसा एक गृहस्थी आदमी हूँ भाई. कोई विशिष्ट आदमी नहीं, कोई महान आदमी नहीं. मैं ऊपर बैठ गया, आप नीचे बैठ गए, में बड़ा नहीं हो गया, आप छोटे नहीं हो गए. ये एक व्यवस्था चली आ रही है कि श्रद्धा के हिसाब से नीचे बैठो. 
तो इसमें दो तरीके हैं. देने-लेने कि किसी गुरु में सामर्थ्य नहीं है, मैं ये आपको आज बता दूं. जैसा आपका शरीर वैसा मेरा शरीर. मुझ में एक परिवर्तन आ गया है, नाथजी कि शरण में गया. आप में भी वो परिवर्तन आ सकता है, हर मानव मात्र में वो परिवर्तन आ सकता है. स्त्री-पुरुष में वो परिवर्तन आ सकता है. केवल ये अपने आपको समझने की जरूरत है कि आप क्या हो? मैं तो आपको अपने आप से इंट्रोडक्शन करवाउंगा कि आप क्या हो? आप ये शरीर नहीं हो. आप आत्मा हो जो अजर-अमर है. हमारे धर्म में कहा है गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती. अब मुक्ति कोई खिलौना है, गुरु के पास जाते ही, जो हाथ में पकड़ा देगा. भाई, वो तो एक रास्ता रास्ता बताता है कि इस मंजिल पर पहुँचने के लिए ये रास्ता है और वो केवल एक ही है नाम-जप. गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है कि “कलियुग केवल नाम आधारा, सुमरि-सुमरि नर उतरे पारा”. कलियुग में केवल ईश्वर के नाम से ही सारी समस्याओं का अंत होता है. 
मंत्र-दीक्षा का विधान देखिये. हठ-योग, सहज-योग, जप-योग, लय-योग कई तरह के योग हैं. मैं जिसकी दीक्षा दे रहा हूँ वह है सिद्धयोग, सिद्धयोग. इसे सिद्धयोग कहते हैं. शक्तिपात-दीक्षा. इसमें गुरु जो है ४ तरह से साधक को चेतन करता है. हाथ टच करे आज्ञा-चक्र पर, मूलाधार पर या फिर मंत्र से, या फिर नजर से भी शक्तिपात होता है. और चौथा है शिष्य जो ले जाता है, गुरु बैठा देखता रह जाता है. ऐसे तो बहुत कम होते हैं. जैसे एकलव्य ने ले लिया, कबीर साहब ने ले लिया. 
तो इस प्रकार से एक परिवर्तन आ रहा है. ईश्वर के नाम-जप से आ रहा है. ये कोई जादू नहीं है. कोई करिश्मा नहीं है. लोग दिखावा करते हें धार्मिक होने का दिखावा करते हैं. दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि हम देखो कैसे धर्मिक हैं. समझे. अब मैं कई दफे कह देता हूँ, अब कोई पूछे किस जाति किस धर्म के हो? कहने लगे जी, हिंदू हैं. कोई पूछ ले हिन्दू क्या होता है? योरोप के कई, मतलब वहाँ के जिज्ञासु लोग पूछे कि, व्हाट इज हिन्दुइज्म? तो वही घंटी बज रही है. मैं तो कहता हूँ पूर्ण मनुष्य का मतलब ही हिन्दू है. चाहे वह कोई जाति का हो, कोई धर्म का हो. हिन्दू धर्म मनुष्य के पूर्णता की बात करता है. महर्षि अरविन्द ने एक जगह लिखा है की “मैन इज ए ट्रांजिशनल बीइंग, ही इज नॉट फ़ाइनल बट ही विल बी”. तो मनुष्य परिवर्तनशील प्राणी है और वो पूर्णता प्राप्त करेगा. महर्षि की भविष्यवाणी है कि आगामी मानव-जाति दिव्य-रूप धारण करेगी. डिवाइन फॉर्म में बदल जायेगी. इससे विज्ञान बहुत परेशान है. पर एड्स कैंसर ठीक हो रहे हैं इसका क्या है जबाब हमारे पास? 
इसमें दो ही तरीके हैं भैया, नाम-जप और ध्यान. पहला जो नाम-जप जो गुरु देता है, उसको निरंतर जपना होता है. राउंड दी क्लोक. अब जप-विज्ञान में एक टर्म है अजपा-जाप, अजपा-जाप. भई आपके अंदर जो बैठा है वही जपना शुरू कर देगा. रैदासजी के भजन से स्पष्ट होता है अजपा क्या है. रैदास के गुरु ने बताया नाम जपो, तो जपने लग गया बेचारा. अब वो बंद ही नहीं होवे. तो रैदासजी परेशान हो गए. कहने लगे “अब कैसे छूटे नाम रट लागी” 
इस प्रकार आप जो बीमार हैं, कैंसर है, एड्स है, कोई भी असाध्य रोग है, ठीक हो रहा है. समझे नहीं समझे? महर्षि अरविन्द ने कहा है कि इस देश का उद्धार दो मंत्र करेंगे. पहला मन्त्र १९०६ में प्रकट हो गया. आज भी वंदे मातरम नहीं बोलने दिया जा रहा है. आई टेल यू फैक्ट है. और दुसरे के लिए कहा है वो संजीवनी मंत्र होगा. मैं जो दीक्षा दे रहा हूँ वो संजीवनी मंत्र है. मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि संजीवनी मैं क्या है आफ्टरआल. लक्ष्मण के तीर लगा शक्ति का, बेहोश हो गए, मूर्छित हो गए. हनुमानजी लाए संजीवनी बूटी, उससे वो होश में आ गए. चेतना भी आ गई. अगर मर जाते तो संजीवनी काम नहीं करता. तो आपको चाहे एड्स है, कैंसर है, हेपेटाइटिस “बी” है, ब्लड कैंसर है, कुछ भी है. मेडीकल साइंस न असाध्य कह दिया है. ये मंत्र आपने सुन लिया, तो मरोगे नहीं. 
एक केस यहाँ आया था. इस वरांडे में लेटा हुआ था, भंवरलाल नाम का. सन २००० कि बात है. मथुरादास माथुर होस्पीटल में एडमिट था, जोधपुर में ही. ड्रिप चढ़ रही थी. ड्रिप बंद हो गई. डोक्टोर्स ने कहा- ले जाओ. ये अब २-४ घंटे का मेहमान है. तो उसके छोटे भाई को किसी ने बताया कि यहाँ एक गुरूजी बैठते हैं. कहते हैं रोग ठीक होते हैं. नहीं मरा. शाम को गुरुवार को यहाँ ले आये. उसने मुझे बताया कि गुरुजी ना मैं बोल सकता था, ना आँख खोल सकता था, ना हिलडुल सकता था. इतनी शक्ति थी ही नहीं. सुन सकता था, समझ सकता था. वहाँ वरांडे में लेते आदमी ने नाम सुना और जपना शरू कर दिया, तो ३-४ दिन में कोमा से बाहर आ गया. और वो आदमी आज भी पूर्ण स्वस्थ है. ७ साल हो गए. 
तो ये एक ऐसा मंत्र है. शक्तिपात दीक्षा का एक सिद्धांत है- एक संजीवनी मंत्र है. इसके बारे में अरविन्द ने लिखा है कि वो मिस्टिक है, बहुत सीक्रेट है. समझे कि नहीं समझे? पर नोट यट रिवील्ड. अभी प्रकट नहीं हुआ है. तो मैं तो राधा और कृष्ण के मंत्र की दीक्षा देता हूँ भाई. वो कृष्ण की शक्ति है कि आपको जीवन दे देता है. वो कृष्ण जो है पूर्ण अवतार थे. उनके लिए कोई भी काम असंभव नहीं है. अब वो ठीक है कृष्ण के नाम से दुकानदारी चल रही है. आप भी जानते हो, मैं भी जानता हूँ. योग के नाम से जो बाज़ार लगा है, खूब बिकता है. योग के नाम से खूब बिकता है. वैस्ट में भी बिकता है. इस देश में ही नहीं बिकता है, अमेरिका में भी खूब बिकता है. खूब मंहगा बिकता है. 
तो इस प्रकार जो आपको नाम बताऊँगा उसको आपको जपना है हर समय. दूसरा ध्यान. अब हमारा योग दर्शन कहता है जो ब्रह्माण्ड में है वो सारा पिण्ड में है जो पिण्ड में है वो ही ब्रह्मांड में है. जब सारा ही ब्रह्माण्ड आपके अंदर है तो सारे देवता और दानव आपके अंदर हैं. एक कैंसर का डाक्टर आ गया था मेर पास २००० के आसपास, बीकानेर में, आर.के चौधरी. आजकल वो अजमेर में है होस्पिटल सुपरिंटेंडेंट. मेने कहा- डाक्टर साहब, कैंसर ठीक क्यों नहीं होता? कहने लगा- गुरूजी पता ही नहीं इसकी जड़ कहाँ है? मेने उसको कहा- बी.बी.सी. में एक न्यूज़ आई थी कि शारीर के कुछ ऐसे जीन्स विचलित हो जाते हें, मतलब कोई ऐसी शक्ति उनको आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती है और इस प्रकार उसका आदेश मानकर सेल जो है डरने लगता है, मरने लगता है और आदमी मर जाता है. तो कहने लगा- बात ये फेक्ट है. 
तो अब सुने मेरी बात सुने, हम जो कर रहे हैं भई. हम कहते हैं देव और दानव अंदर हैं और किसी कारणवश दानव प्रभावी हो गया. रावण पॉवर में आ गया. उसका तो काम अपना मारना काटना. उसने अपना काम शुरू कर दिया. उसी आदमी में जिसमें रावण प्रभावी हो गया अगर राम प्रभावी हो जाये तो? इसका कहना नहीं मने तो? फिर कहने लगा- कैंसर क्योर होगा. मैंने कहा- ये ठीक है, मैं जानता हूँ आप आसानी से नहीं मानोगे. फिर उसके बाद से मेने शुरू कर दिया कि राम को चेतन करो, रावण को मारो. ये आदमी के अंदर जो रावण राज, तामसिक व् सात्विक वृत्तियों का द्वंद्व अनादि कल से चला आ रहा है. आज रावण प्रभावी है पूरी दुनियां में. 
पहले-पहले एक बोहरा जी आये थे फलोदी से, उनको हेपेटाइटिस “बी” और ब्लड कैंसर था. गाँधी मैदान में प्रोग्राम होता था. आश्रम नहीं था. उस वक्त तो वो आ गए. और २२ वें दिन रिजल्ट नेगेटिव आ गया. और वापस मुंबई चले गए. फिर मेरे शिष्यों ने बताया. हेपेटाइटिस “बी” कैसे ठीक हो गया? उन्होंने कहा जी ये तो पोजिटिव रिपोर्ट है. नेगटिव रिपोर्ट लाओ नेगटिव. बॉम्बे फोन किया गया उनको. उन्होंने कहा जी सारा मामला ही चोपट हो गया. फ्लेट बिक गया. सामान बिक गया. मेरे पास तो नहीं है. इसके टेस्ट के लगते हैं ५००० रुपये. आप ही भिजवा दो. अब हमारे ना तो लेते हैं ना देते हैं. तो मेने कहा- भाई, रहने दे. आज वो आदमी है नेगटिव में जिन्दा. अभी है. इंटरव्यू हुआ था पिछले प्रोग्राम में. मगर वो नेगटिव रिपोर्ट नहीं है. ५००० रुपये ना वो कर सकता है ना में दे सकता. तो इस प्रकार हरेक रोग ठीक होता है. हेपेटाइटिस “बी” तो ऐसी बीमारी है कि डॉक्टर्स ने कहा, बॉम्बे में मुझे डॉक्टर्स ने कहा जी विश्व में करोडों आदमी इससे ग्रसित हैं. हम जानते हैं ईश्वर नहीं बचा सकता. वो ठीक हो गया. 
इस प्रकार सारे रोग ठीक हो जायेंगे. एड्स वाले घबराइयेगा नहीं. एड्स का आदमी अगर, जो नाम बताऊँगा वो जपना शुरू कर देगा तो ४५ वें दिन में नेगटिव हो जायेगा. हो रहे हैं. एक नहीं, हजारों हो रहे हैं. अब तो मेने रिपोर्ट्स लेनी बंद कर दी हैं. पड़ीं हैं ढेर सारी रिपोर्ट्स पूरे देश की, कम से कम ७-८ हज़ार लोगों की. अब वो डोक्टर्स ने, कई डोक्टर्स मेरे शिष्य हैं. मेने कहा जी आप बोलो. उन्होंने कहा- हम तो बोल कैसे सकते हैं? डोक्टर्स के समाज को छोड़ कैसे सकते हैं? एक डॉक्टर ने बोला गुरूजी, मुझे सन्देश दिया गुरूजी, ये भर घटने-बढ़ने की आप कहते हो ना, आज भंवरलाल जो है ४६ के.जी. हो गया. पहले ६५ के.जी. वजन था. और जो एड्स डिक्लेअर हुई और चलते ४६ के.जी. आ गया. आज वो ९० के.जी. का है. तो एक डॉक्टर ने मेसेज किया गुरूजी आप एच.आई.वी. वाइरल लोड टेस्ट करवा लो. वो अगर ५० से नीचे चला जायेगा तो फिर एड्स खतम. अब मैं क्या जानूँ, सी.डी.-४, सी.डी.-८ क्या होता है? एच.आई.वी. वाइरल लोड क्या होता है? मैं डॉक्टर तो नहीं हूँ भाई. ये तो उनकी टर्म्स है. मैंने वाइरल लोड शुरू करवा दिया वो २० से भी नीचे आ गया. 
बॉम्बे में एक लड़की का हसबंड मर गया. जे.जे. हॉस्पिटल में. वो टेस्ट कराने गई. मेरे से दीक्षा ली है. ४-५ महीने बाद टेस्ट करने गई. डॉक्टर ने ३ बार खून लिया तो उसने कहा- डॉक्टर साहब, आप तो एक बार ही खून लेते हो. कहने लगे, तेरा हसबंड तो एड्स से मारा था ना. कहने लागी हाँ. तो तेरे तो है ही नहीं एड्स. तो एम्स में सारी रिपोर्ट्स जा रही है. मगर सरकार इसलिए परेशान है कि इसको कैसे हाईलाइट करें. मतलब विज्ञान के पास स्पिरिट नाम कि कोई चीज ही नहीं है. मैटर ही मैटर है. 
अब जो मुझमें परिवर्तन आ गया, देखिये अगर मुझ में परिवर्तन नहीं आता तो आपको कुछ भी नहीं दे सकता था. नाम-जाप ४२ साल कि उम्र से शुरू किया था ये नाम जपना. और आज ८१ पूरे हो जायेंगे २००७ को, ८२ में लग जाऊंगा. तो इस कारण से मुझमे जो बदलाव आ गया और मैं आपको बताऊँ आप में भी आ जाता है, मैं कुछ नहीं दूँगा आपको. कोई कुछ नहीं दे सकता, समझे नहीं समझे? आपको एक तरीका बताऊँगा उसका नाम जपोगे तो अन्दर वाला डॉक्टर चेतन हो जायेगा. मैं पेशेन्ट को कहता हूँ, डॉक्टर को भी कहता हूँ कि बाहर जो बैठा है डॉक्टर, उसका इलाज लेते रहो. मैंने साइंस को कभी इंकार नहीं किया, साइंस एक सच्चाई है मगर अभी अपूर्ण है. ये सत्य है, पूर्ण नहीं है. सिकन्दर के गुरु थे अरस्तू, अरस्तू. वो अपने टाइम के बहुत बड़े वैज्ञानिक, उन्होंने कहा कि “विज्ञान एक अपूर्ण दर्शन है, दर्शन पूर्ण विज्ञान है. तो हमारा ये दर्शन पूर्ण विज्ञान है. विज्ञान तो एक सप्लीमेंटल चीज दे रहा है. विज्ञान का विरोध मैंने कभी नहीं किया. मगर मैं कहता हूँ एक डॉक्टर अंदर भी बैठा है. अंदर वाले डॉक्टर ने बाहर वाले डॉक्टर को जो बता दिया वो उतना ही जानता है. अभी उसके पास बहुत कुछ है देने को. मैं तो आपके अन्दर बैठे उस डॉक्टर से परिचय करवा दूँगा भाई. इंट्रोडक्शन करवा दूँगा, दोस्ती आपको करनी पड़ेगी, वो काम आपका है. मतलब उसका नाम निरंतर जपना पड़ेगा. 
तो नाम जाप से क्या है आपकी कुण्डलिनी जग जाएगी. कुण्डलिनी जिसे आप बाहर पूजते हो देवी के रूप में, राधा कह दो, अम्बा कह दो, दुर्गा कह दो, पार्वती कह दो, सीता कह दो. आपने वो नाम अलग-अलग रखे हैं. हमारे योग में उसको कह दिया कुण्डलिनी, जो रीढ़ की हड्डी के आखिरी में सेक्रम होता है छोटा हिस्सा, उसमें साढ़े तीन आंटा लगाकर सोई रहती है और अपनी पूँछ अपने मुंह में दबाए रखती है. वो चेतन होकर के ऊपर उठने लग जाती है. वो पृथ्वी तत्व है, मदर ऑफ यूनीवर्स है वो अपने मालिक के पास यहाँ (सहस्रार) पहुचने के लिए ऊपर उठेगी. जागृत होकर सीधी खड़ी हो जाएगी और ऊपर उठने की कोशिश करेगी. अब ऊपर उठे कैसे? पीछे से कोई धक्का दे तो ऊपर उठे ना. तो योग में ५ प्रकार के वायु होते हैं. प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान. हरेक वायु अपने-अपने शरीर में अलग-अलग काम करता है. अपान वायु, नाभि से नीचे-नीचे के डिस्चार्ज को बाहर फेंकता है. जब तक अपान वायु ऊपर ना उठे, कुण्डलिनी को धक्का ना दे तब तक ऊपर नहीं उठेगी. हमारा धर्म पूर्ण साइंटिफिक है. राकेट ऊपर जाता है. आप देखते हो नीचे स्पार्क होता है. इसी तरह का पुश उसको लगना चाहिए. इससे पहले ३ बंध लगते हैं, तीनों बंध अपने आप लगेंगे, आपको कुछ नहीं करना. आप तो केवल यहाँ (आज्ञाचक्र पर) मुझे देखो आज्ञाचक्र पर और जो नाम बताया वो जपो. बस इससे आगे आपकी ड्यूटी नहीं है. और इससे कुछ नहीं परिवर्तन होता तो मैं तो कहता हूँ भाई, दूसरा गुरु देखो. गुरु बनाना कोई फोर्मलिटी नहीं है. गुरु दूसरा जन्मदाता है, उससे दीक्षा लेकर अगर वही करो जो पहले कर रहे थे बाद में करो तो गुरु का मतलब क्या हुआ? क्या किया? गुरु बनाना कोई फोर्मलिटी नहीं है. 
हांलाकि इस वक्त ये ऐसा प्रोफेशन है कि इसमें सिर्फ आशीर्वाद देते हैं गुरु, लेना-देना नहीं है, ठीक है, बदनाम हो गया  गुरु. गुरुडम एक बदनाम पेशा है. कहीं कोई गुरु आया तो पूछेगा, तो बात करेंगे, बोलेंगे नहीं, कहेंगे कलेक्शन करना होगा और क्या है, कमी पड़ गयी होगी रूपये-पैसे की. इसके अलावा कोई मान्यता नहीं है, ये बात फेक्ट है. और आज तो आप देख रहे हो ओपन में फीस लगती है. एंट्री फीस, अलग-अलग मंत्र की अलग-अलग फीस. पता नहीं क्या-क्या धंधा है. 
तो मैं जो आपको बता रहा हूँ इसमें धन का जोर कोई काम नहीं करेगा. आज एच.आई.वी. पॉजिटिव को एक अरब रुपया देकर भी नेगटिव नहीं करवा सकते, और हो रही है इस देश में. दोनों डॉक्टर काम करेंगे तो कोई रोग असाध्य नहीं है भैया. ये संजीवनी मंत्र है, इसको जपो. आप सुन रहे हो, अभी जीवन है, चाहे एड्स के बीमार हो, चाहे कैंसर के बीमार हो, चाहे कोई बीमारी हो, सुन रहे हो, अभी डैड नहीं हुए हो तो मरोगे नहीं इस जीवन में, उस बीमारी से जिसको, डोक्टोर्स ने असाध्य कह दिया. १६ साल ये कम कर रहा हूँ १६ साल से. और हजारों लोग ठीक हो गए और एक बात और बताऊँ, मेसेज जो जा रहा है उससे मेरी तस्वीर से योग हो रहा है, तस्वीर से योग हो रहा है. मैं साइंस वालों को कह कर आया हूँ अमेरिका में, कि ये मेरी तस्वीर है, मैं तो भला-बुरा कर दूँ, मेरी तस्वीर तो निर्जीव मैटर है. इससे योग होकर ठीक क्यों हो रहें हैं लोग. इससे क्यों ठीक हो रहे हैं? अमेरिका में ध्यान करती हैं औरतें मेरी तस्वीर का, तो योग हो जाता है अपने आप, एक नहीं हजारों कर रही हैं. 
तो एक ये एक ऐसा विचित्र परिवर्तन मुझ में आ गया. बताऊँ देखिये क्या आ गया. मेरे को जो ये आराधनाये करनी पड़ गईं, परिस्थितियों ने मजबूर किया. लोगों ने कहा आपको मारकेश की दशा है मारकेश की. मैं नहीं जानता था मारकेश क्या होता है. पुछा तो कहने लगे ये होता है. मैंने कहा-ये तो सभी को होता है. कहने लगे बचा जा सकता है. कैसे? कहने लगे, गायत्री जपो. तो गायत्री का सवा लाख मंत्र जपा. मैंने हर मंत्र के पीछे आहुति दी हवन-कुण्ड में. उससे एक प्रकाश पैदा हो गया मेरे शरीर में. पहले मैं नहीं जानता था गायत्री का अर्थ क्या होता है. अब तो समझता हूँ उस दिव्य प्रकाश को अपने अन्दर धारण करने की प्रार्थना है गायत्री मंत्र. अन्दर बॉडी जो है ट्रांसफोर्म हो गई. भई आज तो नहीं उठाना है. आगे तो आँख खुल गई और ध्यान लग गया तो क्या देखता हूँ मेरे शरीर में कोई ऑर्गन नहीं दिख रहा था, ना लीवर दिख रहा है, ना तिल्ली, ना हार्ट, ना ब्लड सर्कुलेशन, न किडनी. मेने कहा ये ऑर्गन्स कहाँ गए? ऑर्गन्स कहाँ गए? एक प्रकाश स्तम्भ शरीर कैसे बन गया? मेने कहा- दिखता तो आँख से है ये अन्दर प्रकाश? बड़े आश्चर्य की बात, फिर उसमें एक भँवरे की गुंजन सुनाई दी पेट में. उसपे कंसन्ट्रेट हुआ तो गायत्री मंत्र जपा जा रहा है नाभि से, कंठ से नहीं, नाभि से, जैसे साईकिल की चैन चलाते रहो. कोई ब्रेक नहीं कोई स्टॉपेज नहीं. इसी तरह से चलता रहा, चलता रहा. और बहुत देर तक सुनता रहा. समझे नहीं समझे. फिर सुबह का टाइम था, नल के पानी की आवाज़ से ध्यान भंग हो गया. फिर बहुत आँख बंद की, देखा, कुछ नहीं हुआ. 
३-४ महीने से एक ही रत लगाये हुआ था तो ख्याल रह गया. लोगों ने बताया- सिद्धि हो गई है, तो मुझे कहा गया, इसका तांत्रिक प्रयोग करो. क्यों तो धन्धे में खूब लाखों रूपया... हमारा भी भला हो जायेगा. फिर मेरे समझ आ गई, कुछ गड़बड़ तो हो गई. तो मैंने कहा- भैया ये काम तो बहुत महंगा है. सोना दो और लोहा लो. ये मैं नहीं करूँगा. आखिर समझाने से नहीं माना तो एक सर्टिफिकेट देके गए, ये जाट है, इसमें अक्ल नहीं है. समझे? फिर मैंने कहा- मन्त्रों से ऐसा होता है. स्वामी विवेकानन्दजी आ गए, उसको पढ़ा. गंगाईनाथजी को गुरु बना लिया. जामसर में बैठते थे. समझे नहीं समझे? आज भी बरसी होती है हर साल जिस दिन डेथ हुई थी. उसको बरसी बोलते हैं. अभी है ३ जनवरी को, जामसर में है. कोई जाना चाहे तो जा सकता है. मुझे तो उसीने दी है जामसर वाले ने. मैं देखिये नौकरी करता था पहले, रेल्वे में हेड-क्लर्क था. इन्होने जाते हुए आदेश दे दिया, बेटा आगे का काम तेरे को करना है तो प्री-मेच्योर रिटायरमेंट ले लिया ७ साल पहले. अब इसकी नौकरी है गंगाईनाथजी की, पहले रेल की नौकरी. भई डिपार्टमेंट बदला है, सही बात तो यही है. समाधि पे प्रार्थना करके आया, पेट वाला मामला तो चालू रहे, बाकी धन-दौलत मुझे नहीं चाहिए. 
तो इस प्रकार एक परिवर्तन आ गया मुझमें, वो आप सब में आ सकता है. नाम-जाप करोगे, कुण्डलिनी जागृत हो जायेगी. अच्छा ३ बंध लगते हैं, ज्यों ही कुण्डलिनी नाभि से ऊपर उठी, दूसरा बंध लग जायेगा. इसको कहते हैं उड्डयान बंध. फिर ऊपर उठते-उठते ये कंठ-कूप है, कंठ का खड्डा. यहाँ से ऊपर उठी तो तीसरा बंध लग जायेगा इसे कहते हैं जालंधर बंध. अब बाकि जो हिस्सा रह गया रीढ़ की हड्डी का उसमें हर तरह का मूवमेंट संभव नहीं है तो प्राणायाम शुरू होता है. आज तो लोग प्राणायाम पहले ही शुरू करवा देते हैं. प्राणायाम तो अंतिम क्रिया है. प्राणायाम तो जब पूर्ण कुम्भक हो जाता है, कुंडलिनी आज्ञाचक्र से ऊपर उठ जाती है तो साधक समाधिस्थ हो जाता है. समाधि लगे बिना मृत्यु का रहस्य पता नहीं लगता. मेरे गोडे में दर्द है तो दर्द की तरफ ध्यान रहेगा. आज्ञाचक्र से ऊपर निकलने का प्रश्न ही नहीं है. 
तो हमारे नाथ संप्रदाय में ९ नाथ आज भी अमर हैं. मछिंदरनाथजी आदि गुरु थे कलियुग के, उन्होंने इस योग के बारे में कहा है कि ये भारतीय योग-दर्शन में जिस योग का वर्णन है वो वेद-रुपी कल्पतरु का अमरफल है. वेद-रुपी कल्पतरु का अमरफल है, इससे साधक के त्रिविध-ताप शांत होते हैं. आदि-दैहिक, आदि-भौतिक, आदि-दैविक. आपकी अंग्रेजी भाषा में फिजीकल डिजीज, मेंटल डिजीज, एंड स्पिरीचुअल डिजीज. फिजीकल और मेंटल को तो डॉक्टर टेकल करता है. स्पिरिट का मामला आते ही पीछे हट जाता है. मैनें वैस्ट में यही कहा है, मेटर प्लस स्पिरिट, जभी पर पड़ेगी नहीं तो नहीं. 
तो इस प्रकार जो योग होगा उससे आपके सारे शारीरिक रोग ठीक हो जायेंगे. गठिया, अस्थमा, डायबिटीज़ पता नहीं क्या-क्या बीमारियाँ हैं शारीरिक, वो सब ठीक हो जायेगीं बिना दवाई के. अच्छा कई लोग कहते हैं, लें दवाई कि ना लें. मेरे जो १० साल का अनुभव है, उसमें ये है कि दवाई को लोगे और साथ में ये भी जपोगे तो आस्था २ जगह डिवाइड हो जायेगी, तो टाइम लगेगा ठीक होने में. ३-४ महीने लग सकते हैं. और केवल मंत्र पर बेस हो जाइये ४५ दिन में ठीक हो जायेंगे. हो रहे हैं. रोगी कि शक्ति पर निर्भर है, बिल्कुल ही बैठ गया है तो दवाई चलने दो और अगर चलता-फिरता है तो कोई जरूरत ही नहीं है दवाई की, ठीक हो जायेगा. चाहे कोई रोग हो, ये संजीवनी मंत्र है. अभी जिन्दा है, इस रोग से मरोगे नहीं. मैं ये चेलेन्ज १०-१५ साल से दे रहा हूँ और सारे ठीक हो रहे हैं. मगर गुरु मानना पड़ेगा. मैं आपको बताऊँ, ये नाथजी को नहीं मानता तो मेरे पास भी कुछ नहीं था. ये नाथजी की कृपा से हो रहा है भाई. 
अब वो अरविन्द ने कहा है कि गुरु अगर मंत्र देता है शिष्य को, वेदों का देता है, उपनिषदों का देता है या ईश्वर के नाम का देता है तो उसकी आवाज़ में ये ताकत होती है. अब आप सुन रहे हो जो पहले-पहले आये हो जो आप लोग, विश्वास नहीं हो रहा कि, होगा तो होगा कैसे? ये आवाज को आ रही है, ये एक एनलाईटण्ड बॉडी में से आ रही है. एक ऑर्डिनरी बॉडी में से नहीं आ रही है. एनलाईटण्ड हो गई, ठीक है, पूर्व-जन्म के संस्कारों से ही हो गई समझो, तो फिर ८४ में कृष्ण कि सिद्धि हो गई. दोनों सिद्धि. 
अरविन्द ने कहा है एक आदमी, देखिये हमारे यहाँ आराधना के दो तरीके हैं, एक तो सन्यासी से दीक्षा लेकर के मंत्र-जप करते हैं, दूसरे मंदिर जाने वाले, तुलसी चरणामृत लिया, कृष्ण के मंदिर गए और दोनों मुक्ति पा रहे हैं, मुक्ति पा रहे हैं. मुक्ति के लिए असेंड करना पड़ता है. यहाँ पहुंचना पड़ता है, सहस्रार में, जहाँ मालिक बैठा है. अरविन्द ने कहा है ये विकास अगर एक आदमी में हो जाय, मतलब दोनों सिद्धियां, मतलब गायत्री की और कृष्ण की, दोनों सिद्धियां एक ही जगह में, एक ही फिजीकल बॉडी में हो जाये तो फिर मानव मात्र के लिए समस्याओं का अंत हो गया पूरी मानव जाति के लिये. एक हो गया वैसा हर मानव हो सकता है. आप सब हो सकते हो. कोई वंडर नहीं है. कोई आश्चर्य नहीं है. अब आश्चर्य इसलिए कि आज तक ऐसा हुआ नहीं. समझे नहीं समझे? और फिर हो भी रहा है मेरे जैसे एक साधारण आदमी के पास, जिसके पास कोई साधन नहीं है. तो आज तो धन का धन का बोलबाला है, मगर धन के बल से ठीक होता तो आज अब तक अमेरिका सारे रोग ठीक नहीं करवा देता. मेरे पास क्यों आ रहे हैं? बहुत लोग आ रहे हैं. बॉम्बे से आ रहे हैं, गुजरात से आ रहे हैं. पूरा देश बॉम्बे जाता है इलाज के लिए, वो लोग मेरे पास आ रहे हैं क्योंकि बॉम्बे में मेरे बहुत से प्रोग्राम हुए हैं. 
तो इस प्रकार नाम-जप और ध्यान से, ध्यान-जप करो तो योग होगा और योग होने से सारे शारीरिक रोग खत्म हो जायेंगे. छोटी सी बीमारी है थायरोइड, ७-८ दिन में ठीक हो जाति है, नहीं तो जीवन भर दवाई लो डॉक्टर की. महीने में २-३ विजिट देओ. कभी एक गोली, कभी आधी, कभी डेढ़ गोली. यहाँ तो ७-८ दिन में गोली बंद. ये दो तरह का होता है हायपर और हाइपो. 
ये कोई मिरेकल नहीं हो रहा है. ये आदमी में होने वाला ड्यू विकास है भाई. हमारा ऋग्वेद कहता हैं शरीर की रचना ७ प्रकार के सैल से हुई है, उसमे आत्मा है, फिर वैदिक ऋषि अलग-अलग सैल्स की बात करते हैं. पहले वो मेटर से शुरू करते हैं, अन्न से बनने वाला कोश, अन्नमय-कोश, प्राणमय-कोश, मनोमय-कोश, फिर विज्ञान मय-कोश. विज्ञानमय-कोश तो पश्चिम ने खूब चेतन कर लिया. मैं इसलिए गया था यू.एस., मैने कहा- केवल विज्ञान से पार नहीं पड़ेगी. ऊपर वाले ३ कोश चेतन होंगे मानव-जाति में सत्-चित-आनंद. जिसे हम कहते हैं सत्+चित+आनंद, सच्चिदानन्द. भगवान कृष्ण को सच्चिदानन्द कहते हैं. सत्-चित-आनंद, मैं उसी के नाम की दीक्षा देता हूँ. राधा-कृष्ण के नाम की दीक्षा देता हूँ. तो ये विकास जब आ जायेगा मानव-जाति में, तब फिर कोई रोग असाध्य नहीं रहेगा. मैं ये प्रैक्टिकल कर रहा हूँ, पहले तो कहता था. कहना तो कोई मानता नहीं है, अब कहना बंद कर दिया, प्रैक्टिकल करके बता रहा हूँ. आ जो अब फैसला हो जायेगा. एक भी पैसा नहीं लगेगा. कैंसर एड्स ठीक हो जायेगा फ्री में. समझे नहीं समझे? मगर गुरु मानना पड़ेगा. और मैं बताऊँ उस मंत्र को ही जपना पड़ेगा. उसमे एडीशन अल्टरेशन नहीं चलेगा. समझे नहीं समझे? कोई ओम आगे लगा लेता है कोई नमः पीछे लगते हैं. ये नहीं है. 
ये आदिगुरु शंकराचार्य ने जिस अद्वैत दर्शन की बात कही है, प्रूव किया है अद्वैत-दर्शन, मतलब क्या है आप जानते हो? दो है ही नहीं, एक ही परमसत्ता अंदर बैठी है. एक ही परमसत्ता. राम सबके अंदर बैठा है, घट-घट का वासी है, ये अद्वैतवाद है. मैं इसको मूर्तरूप दे रहा हूँ. ये तो आदिगुरु शंकराचार्य पहले से प्रूव कर गए. मगर अब बीच में हमारी संस्कृति थोड़ी पतन की तरफ चली गई थी इसलिए ज्ञान लोप, लुप्त हो गया, फिर वापस सरफेस में आ गया. और पूरे विश्व में फेलेगा तो ये तीनों कोश चेतन हो जायेगे. इसी को ध्यान में रखते हुए अरविन्द ने कहा है आगामी मानव-जाति दिव्य-शरीर रूप-धारण करेगी. इस प्रकार जो शारीरिक रोग हैं वो इससे ठीक हो जायेगे इस योग से बिना दवाई के. 
दूसरे होते हैं मानसिक रोग. ८०% बीमारियाँ मनोरोग से होती हैं. मानसिक टेंशन से होती हैं. डॉक्टर के पास मानसिक टेंशन को खत्म करने के लिए कोई दवाई नहीं है. कोई एक फोर्मुला नहीं है जिससे टेंशन खत्म हो जाये. नशे की दवाई देते हैं. ४-५ घंटे असर रहता है. जब तक असर रहा, सुख-शांति रही और असर खत्म हुआ तो रोग वैसा का वैसा और टेंशन वैसा का वैसा. मानसिक तनाव खत्म नहीं कर पा रहे डॉक्टर. वो नशा वास्तव में एक दवाई है. ये हम भी मानते हैं. समझे नहीं समझे? मगर वो नशा मैटर का नहीं होना चाहिए, स्पिरिट का होना चाहिए. समझे नहीं समझे? वो नशा स्पिरिट का होना चाहिए. 
तो मैं आपको मंत्र दूँगा वो कृष्ण के नाम का उससे आपको आनंद आना शुरू हो जायेगा. अब वो हमारे संतो ने इसको नाम-खुमारी कहा है, नाम-खुमारी. नानकदेवजी महाराज ने कहा है- भांग-धतूरा नानका उतर जाये परभात, भांग-धतूरा ले के देख लो, रात भर सोओ, सुबह नशा साफ़. नाम-खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन-रात. भांग-धतूरा नानका उतर जाये परभात, नाम-खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन-रात. यही बात कबीरदास ने कही है. नाम अमल उतरे ना भाई, नाम का नशा उतरता नहीं, और अमल छिन-छिन चढ़ उतरे, नाम अमल दिन बढे सवाया. तो गीता में भगवान ने इसको आनंद कहा है, दिव्या आनंद कहा है, अक्षय आनंद कहा है, अनंत आनंद कहा है, अद्वितीय आनंद कहा है, ईश्वर ध्यान-जनित आनंद कहा है. गीता में ५ श्लोक हैं. ५वें अध्याय में २१वां श्लोक, छठे अध्याय में ४ श्लोक हैं-१५,२१,२७,२८ समझे नहीं समझे? तब वो नाम वाला नशा उतरता नहीं है, डाक्टर वाला उतर जाता है, इसलिए रोग खतम हो रहे हैं. इसलिए टेंशन से रिलेटेड सारे रोग इस नाम के नशे से ठीक हो जायेंगे. 
शारीरिक रोग ठीक हो गए कसरत से, जो योग कुण्डलिनी करवाएगी. पहले आपका आसन बदलेगा फिर बंध लगेंगे, फिर कुण्डलिनी ऊपर पहुंचेगी. यहाँ से ऊपर गई तो समाधि लग जायेगी. पूर्ण रोग मुक्ति के लिए समाधिस्त होना बहुत जरूरी है. तो इस प्रकार मानसिक रोग खतम, शरीरिक रोग खतम, नशे छूट जाते हैं. अब नशे छूट रहे हैं, वैस्ट को बहुत परेशानी है नशे से, वो लोग मुझे कहते थे, कहने लगे- हम लोग तो भगवान-वगवान से डरते नहीं हैं, ये हेरोइन मारेगी, छूटती नहीं. अफीम, बीढ़ी, सिगरेट तक नहीं छूटती, जोर लगा लिया. 
तो हमारे यहाँ सब छूट जाती है चंद दिनों में छूट जाती है. तो ये सब वृत्ति बदलने से होता है. आपको मालूम है, त्रिगुणमयी-माया से सृष्टी की उत्पत्ति हुई. रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण. तो तामसिक ग्लैंड डिमांड करती है अंदर नशा, मीट, शराब. वो डिमांड जो है उसको साइंस खत्म नहीं कर पाती, उससे छीनती है. उस छीना-झपटी में वो मर जाता है. अफीम का बीमार है वो मर जायेगा. किराडा एक गांव है हिसार हरियाणा का. वहाँ एक आदमी इन्ट्रावीनस हेरोइन के इन्जेक्शन लेने लग गया. लगते-लगते रोज के १०-१२. अपने आप लगाने लगा तो घर वालों को पता लगा, एम्स ले गए, उन्होंने कहा जी- छुड़वा दोगे तो १० दिन में मर जायेगा, नहीं तो दो साल से ज्यादा जिन्दा नहीं रहेगा. वो मेरे पास आ गया. ५-६ दिन में ही सारी गोलियां-नशा वगेरह छूट गया. आज भी वो जिन्दा है. डॉक्टर कहते हैं हमारी साइंस तो कहती है उसको जीने का अधिकार नहीं है. आज भी जिन्दा है. हिसार में अपने कृषि फार्म में ट्रेक्टर चला रहा है. 
तो ये क्यों हो रहा है कि ये वृत्ति नहीं बदल सकते. स्वामी विवेकानन्दजी यू.एस. मैं स्पीच दे रहे थे, एक अमेरिकन ने खड़े होकर कहा किजी महाराज आप लंबा-चोड़ा लेक्चर दे रहे हो, आपके धर्म में तो शाकाहारी-मांसाहारी बड़ा लफड़ा है, हमारे में तो सारे मीट शराब खाने वाले लोग हैं. तो स्वामी जी ने कह दिया चलती स्पीच में- यू नीड नॉट टू गिव-अप द थिंग्स, थिंग्स विल गिव यू अप. आपको उन वस्तुओं को छोड़ने कि जरूरत नहीं है, वस्तुएं आपको छोड़ जाएँगी, फिर क्या करोगे? कितने संत उपदेश देते हैं शराब मत पियो, अफीम मत खाओ, ये मत करो कोई मानता है क्या? इधर से सुनता है इधर से निकाल देता है. अब मेरी क्यों मानेगा? मैं कहता हूँ मत छोड़ो. शराब पीते हो तो एक कि जगह डेढ़ बोतल आज से ही शुरू कर दो, हाँ चेलेन्ज! मगर नाम को नहीं छोड़ो. आज तक नाम और नशा साथ नहीं चला. हजारों आदमियों ने छोड़ दिया. गिनती क्या है, लाखो में हो सकता है. बाड़मेर में अफीम छूट गई केवल मेरी तस्वीर से. अब साइंस वहाँ जाकर परेशान है, इसकी तस्वीर से ये सब क्या अडंगा होना शुरू हो गया. ये तो मुझमे परिवर्तन आ गया भाई इन्नोसेंट वे में आ गया. आज जो हूँ वो बनना नहीं चाहता था. मैं भी आपकी तरह एक गृहस्थी और बहुत ईगो वाला आदमी था. 
तो इस प्रकार नशा छूट गया, शारीरिक रोग खतम, मानसिक रोग खतम, भौतिक सुख तो मिल ही गया ना. अब भगवान कृष्ण ने कहा है गीता में चौथे अध्याय में, यदा-यदा ही धर्मस्य .... ग्लानिर्भवति.... वो युग आ गया. समझे नहीं समझे? वो युग आ गया. सारे संसार के धर्मो की एक जैसी स्थिति है, हमारी ही नहीं है. मैं इज़रायल गया था वाहन भी यहूदियों की यही हालत है. अमेरिका में वहाँ भी अमेरिकन्स की यही हालत है. सब यही कहते हैं धार्मिक क्षेत्र की बात, देखो जी ईसा ने किया, मूसा ने किया, मोहम्मद ने किया. हम कह रहे हैं राम ने किया, कृष्ण ने किया, बुद्ध ने किया. सब कह रहे हैं पीछे देखो पीछे, और हम देख देख रहे हैं पीछे और चल रहे हैं आगे. देख रहे हैं पीछे और चल रहे हैं आगे तो ठोकर नहीं लगेगी तो खड्डे में नीचे नहीं गिरोगे तो और क्या होगा? आगे चलने की कोई बात ही नहीं बताता. आगे तो मौत है ना. मौत क्या है? इसकी तो किसी को जानकारी, किसी को समय का मालूम ही नहीं है और ठोकरें खा रहे हैं और परेशान हो रहे हैं. सारे विश्व के धर्म, एक धर्म नहीं, सब धर्मों की यही स्थिति है. अब पातंजलि योग-दर्शन की बात कहने वाले लोग ये बताना भूल जाते हैं कि पातंजलि योग-दर्शन के तीसरे चैप्टर मैं विभूति-पाद, उसमें ऋषि ने कहा है कि यदि साधक को प्रातिभ ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो उसे ६ सिद्धियों प्राप्त होती हैं, उसमें पहली सिद्धि है ध्यान और समाधि कि स्थिति में साधक अनलिमिटेड पास्ट-फ्यूचर को देखता-सुनता है. तीसरी आँख से जब तक दसवां द्वार नहीं खुलेगा तब तक ना कोई योग है ना कोई ध्यान है. इसलिए गुरु को यहाँ देखते हैं आज्ञा-चक्र पर, गुरु मन को अरेस्ट कर लेता है. गुरुत्वाकर्षण का नाम ही गुरु है. ये शरीर गुरु थोड़े ही है. ये तो अभी मर जायेगा २-४ साल में, गुरु तो आपके अंदर बैठा है. 
तो हमारे विज्ञान में टाइम एंड स्पेस कि कोई वेल्यु नहीं है. आप मेरे में हो, मैं आप में हूँ. आप जहां याद करोगे मैं प्रेजेन्ट रहूँगा. गुरु अगर वास्तव में गुरु है तो ओम्निप्रेजेन्ट है और ठीक है प्रोफेशनल है तो आशीर्वाद देदो, जो देदो ले जायेगा, राजी-खुशी हो जायेगा. चल रहा है. इसमें कोई बात नहीं है फीस भी ली जा रही है. अब एक एच.आई.वी. पोजिटिव होने के बाद में, मैने वैस्ट में भी कहा, एक अरब रुपये दे दूँगा अगर ठीक कर दो तो और मुफ्त में हो रहा है. तो इस प्रकार ध्यान-जप करोगे, ध्यान-जप करोगे, आपको अनलिमिटेड पास्ट-फ्यूचर दिखेगा, सुनाई देगा. विज्ञान भी मानता है जो शब्द बोला जा चुका, वो ब्रह्मांड में रहता है, कभी नष्ट नहीं होता. अगर आपके पास प्रोपर यन्त्र है तो आप उसे, ध्वनि को सुन सकते हो. हमारा योग कहता है, जब आवाज़ है, शब्द है तो बोलने वाला भी कोई रहा होगा. उसको बोलते देखा सुना जाना संभव है. वो तो रिप्ले दिखाते हैं क्रिकेट वाले. मैने कहा ये तो रिप्ले दिखा रहा है. डन इज डन. महाभारत हो गया वो अनडन थोड़ी होगा. (अब आगे क्या होना है)२, क्या होना है, वो आदमी देख सकता है. ये खुली चुनोती है विज्ञान को. समझे नहीं समझे? आ नहीं रहे वो सामने आ नहीं रहे. पश्चिम को बड़ा गर्व है, साइंस इज गोड. मैने यू.एस. में कहा- गलत, गोड इज साइंस. चुप हो गए. मैंने कहा- ईश्वर ने मनुष्य को पैदा किया, साइंस तो बाद में सीखी. तो साइंस को भगवान बना दिया. तुम्हारा भगवान ठीक क्यों नहीं कर पा रहा और हमारे वाला भगवान ठीक कर रहा है. 
तो इस प्रकार ध्यान कि स्थिति में आपने कई आदमियों कि मौत देख ली. अपने कई परचितों कि मौत देख ली, आया है उसको जाना है- २० में, ३० में, ५० में, १०० में. आप सब जानते हो, मारना तो पड़ेगा ही. बचने का कोई उपाय नहीं है फिर क्यों डरते हो? तो माया ने मौत को ऐसा डरावना बना दिया है, कोई उसको स्वीकार नहीं करता और वो किसी को छोड़ती नहीं. तो इस नाम-जप और ध्यान से माया का आवरण क्षीण हो जायेगा. मौत कि सच्चाई सामने आ जायेगी. अब जब देखोगे कि ये तो ऐसा वरदान है ईश्वर का, जो जन्म-मरण से छुटकारा दिलाता है. जल्दी आवे, डरोगे नहीं. कबीर ने कहा है इस बारे में- जा मरने से जग डरे मोरे मन आनंद, कब मरिहों कब पाईयों पूरण परमानन्द. तो ये स्थिति आपकी इसी जन्म में हो जायेगी. चाहे किसी जाति, वर्ण, धर्म के हो, कोई फर्क नहीं पड़ता. 
कश्मीरी शैव-सिद्धांत जो है, आजकल तो कश्मीर के नाम से लड़ाई-झगड़े हैं, कोई बात नहीं. कश्मीरी शैव्-सिद्धांत तो मानव मात्र में परिवर्तन कि बात करता है. मैं कश्मीरी शैव-सिद्धांत को मूर्त-रूप दे रहा हूँ. तो प्रातिभ-ज्ञान प्राप्त हो जायेगा. तो ध्यान कि स्थिति में आपने अपने कई परचितों की मौत देश ली, कैसे मरेगा? और वो मरते गए, मरते गए. १०-२०-३० एक आध होता है, एक्सेप्शन मान कर छोड़ दो. १०-२०-३० जैसे दिखे वैसे मरे तो? कल को ख्याल आ गया, तू कौनसा अमर रहेगा? तो दिख जायेगा कैसे मरोगे? एक्साक्ट. किस उम्र में मरोगे दिख जायेगा? अपने वाली दिखी तो घबरा गए. दुनिया मरे अपने क्या लेना-देना. आप वाली मौत दिखी तो फिर खोटे-खरे किये जीवन में वो सामने आ जाता है. दुनिया से तो छिपा लो अपने आप से कोई छिपा सकता है क्या? तुमने क्या किया क्या नहीं किया? और उसको देखकर जो खोटे कर तो लिए भगवान से प्रार्थना करता है तू तो दयालु है ना. सुना है तू दयालु है. मेरे से गलती हो गई. मैं नालायक था अब माफ कर दे, आइन्दा नहीं करूँगा. फिर वो उसको जैसे अर्जुन को चिड़िया की आँख दिखी बस वो आँख बंद करके प्रार्थना करता है प्रभु अब की बार बचा दे. पलक उलट के देखो, अन्दर ही बैठा है. सारा ब्रह्मांड अंदर है तो सारे ब्रह्मांड का रचियता अन्दर है, साक्षात्कार हो जायेगा. उससे साक्षात्कार हो जायेगा उससे, इसका मतलब, जन्म-मरण से पीछा छूट जायेगा. इस सायकल से आदमी मुक्त हो जायेगा. मेरा ऑब्जेक्ट ये है. मेरा ऑब्जेक्ट रोग है ही नहीं. मैने कभी नहीं कहा मैं ठीक करता हूँ रोग. ठीक करने वाला आपके अंदर बैठा है, बाहर वाले से आप इलाज करा लो अंदर वाले से जुड़ जाइये. फिर देखिये कैसे नहीं होता ठीक. हो रहे हैं तभी तो लोग आ रहे हैं. देश के कोने-कोने से आये हैं बेचारे. तो इस प्रकार कबीर ने, एक और उदाहरण दूँ कबीर का, कबीर ने कहा- जल-विच कुम्भ, कुम्भ-विच जल है, बाहर भीतर पानी, फिर कहता है, मिटटी का घड़ा है, पानी से भरा है, और पानी के अंदर रख दो तो घड़े के अंदर भी पानी बाहर भी पानी. जल-विच कुम्भ, कुम्भ-विच जल है, बाहर भीतर पानी, विघटा कुम्भ जल जल ही समाना, यह गति विरले ने जानी. कबीर कहता है मिट्टी का घड़ा गल जाये, फूट जाये, फिर बाहर वाला पानी अंदर वाला पानी एक. तो यह घड़ा लिए बैठे हो ना, यह तो आज नहीं कल गलना है भाई. अगर जन्म-मरण के चक्कर से छूटना चाहते हो तो फिर नाम-जप और ध्यान की, लगा दो नाम की झड़ी. यह नाम-जप मत छोड़ना, नाम चाबी है. नाम का नशा नहीं आएगा तो ध्यान नहीं लगेगा. तो नाम-जप हर समय जपो. उठते-बैठते, खाते-पीते, टट्टी जाते, पेशाब करते, कोई इसमें रोक नहीं है. हाँ, बोल के जपो, तो फिर नहाओ-धोओ, आसान पे बैठो, अगरबत्ती करो, करम कांड. मानसिक जप, गायत्री मंत्र, मानसिक जप कोई भी कर सकता है. वो एक तरीका है जीवन में परिवर्तन लाने का. 
अब मैं वो मंत्र बताऊँ आपको, उससे पहले थोड़ी मर्यादा बतादूं. महर्षि अरविन्द ने भी कहा है, मंत्र गुरु द्वारा दिया गया ही काम करता है. गुरु के मुँह से जो मंत्र दिया, वही काम करता है. किताब से पढ़ा हुआ असर नहीं करता. उसको भी मिस्टिक कहा है, सीक्रेट कहा है. गुप्त है वो. तो आप को वो मैं मंत्र दूँ उसको आप और किसी को नहीं बताओगे. और किसी को मतलब जो दीक्षा में शामिल नहीं हैं. अनपढ़ स्त्री-पुरुष साथ बैठे हुए बता सकते हो एक दूसरे को, मगर जो आया ही नहीं है, उसको नहीं बतायेंगे. और बता दिया तो क्या है, उसका तो कोई लाभ भी नहीं होगा. 
भगवान का नाम लेने से भौतिक समस्याओं का अंत नहीं होता तो नाम ही क्यों लो? मगर जिसने लिया ही नहीं वो उपदेश देवे और खुद उससे उल्टा चले, तब फायदा नहीं. तो मुझे करना पड़ गया, मुझे जपना पढ़ गया. राजी-खुशी तो मैंने भी नहीं जपा भाई. परिस्थितियों ने मजबूर किया और यहाँ तक पहुंचा दिया. तो गुरु का आदेश है की तेरे दरवाजे से खाली नहीं जाये. पात्र उल्टा रखोगे, मेरे बस की बात नहीं है. और गुरु के प्रति समर्पित भाव, और गुरु कुछ नहीं चाहता. अब वो मेरी आवाज में परिवर्तन आ गया, स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में स्पीच दे रहे थे तो किताबी ज्ञान तो बोल दिया, आज क्या बोलेंगे, चले गए स्टेज पे, बोलने लग गए. जब नीचे उतरे तो कहने लगे, “आज मैंने क्या बोला, मुझे नहीं मालूम, मगर तालियाँ हमेशा से ज्यादा बजी.” तब उन्होंने ने कहा “मैं तो भ्रम में था कि मैं बोल रहा हूँ. वो रामकृष्ण परमहंस बोल रहे थे.” तो मुझे वो भ्रम नहीं है. मैं नहीं बोल रहा हूँ. वो ये नाथजी बोल रहे हैं, गंगाईनाथजी. मैं तो एक माइक हूँ भाई. यह आवाज तो उनहीं की है. सीधी बात है. (गुरुदेव यहाँ मंत्र बताते हैं. मंत्र प्राप्त करने हेतु “मंत्र कैसे प्राप्त करें” लिंक को क्लिक करें)
अब १५ मिनट ध्यान करेंगे आप लोग. कोई योगिक मूवमेन्ट हो तो घबराईयेगा नहीं. टाइम जितना ले लिया उससे एक सेकंड भी आगे पीछे नहीं जाएगा. सर्दी में आधा घंटा तक कर सकते हो, गर्मी में १५ मिनट. मगर नाम-जप छूटना नहीं चाहिए. चाबी नाम है. सारी समस्याओं का हल तो नाम से ही होगा. गोस्वामी ने कहा है “कलियुग केवल नाम-आधारा सुमरि-सुमरि नर उतरे पारा.” अब १५ मिनट ध्यान कर लो.


http://www.the-comforter.org/How_to_Meditate.html

Guru Siyag's Speech(in English)

I will first explain the philosophical base of Siddha Yoga.

The truth is that until now religion (dharma) has not been able to bring about a transformation in mankind.
When all kinds of incurable diseases are cured through a spiritual master, the scientific community is astonished by such a claim.

In Kali Yuga (Age of Falsehood) dharma has been gradually declining. But there is a limit to the fall of dharma. When there is no space left to fall further, dharma must arise once more. All civilizations rise and fall. That is the law of nature.

Humankind has now entered a phase where it has begun to ascend. Sanatana Dharma will be a universal religion. Humanity cannot realize the truth only through sermons and teachings. If it could, it would have done so long ago.

There is a lot of interest around the world in Yoga and the Kundalini. The West has come to realize that peace cannot be attained through wealth or armed force. The only way to establish world peace is through spiritual force. And spiritual force can be manifested only through the awakening of the Kundalini.

Throughout the world only physical exercises are being performed in the name of Yoga. When I went to the United States of America I saw that there too, Yoga meant physical exercise. But the aim of the Yoga described in Vedic philosophy is Moksha or liberation from the cycle of life and death.

In fact, Vedic philosophy does not speak of diseases at all. For instance, the Patanjali Yoga philosophy has 195 aphorisms (sutras)
and none of those mention anything about diseases. The philosophy speaks of the ways in which the imprints (samskaras) of past lives can be destroyed.

The Patanjali Yoga philosophy is divided into four Paad (Chapters):
Samadhi Paad,
Sadhan Paad,
Vibhuti Paad and Kevalya Paad.

In the first chapter, "Samadhi Paad," in the very second aphorism Sage Patanjali describes Yoga as the cessation of the tendencies of the mind. The mind is always in turmoil. And meditation or Yoga can be practiced only when the mind is silenced.

In aphorisms 24 to 29 of Samadhi Paad Sage Patanjali clearly states that the attainment of Yogic powers (siddhi) and liberation is possible only by chanting the name of God.

In Kali Yuga (Age of Falsehood), only the chanting of the name of God can guide you toward Moksha (liberation). To evolve on the path of Moksha (liberation), man has to first be free from all forms of sufferings.

An ordinary man, such as me, has become the instrument through which this knowledge is manifesting itself. I am not extraordinary. I am just an ordinary man like you. I am seated on a stage while you are sitting on the ground. But that does not make me more important and you less important.This practice is a tradition in the Guru-disciple relation. In this tradition the disciple expresses his faith and respect by sitting at a level lower than the Guru.

I want to state this clearly: No Guru is capable of taking or giving anything. We are not different. My body is similar to yours. I experienced a complete change when I surrendered to my Guru Gangainathji. You too, can experience this change. All of mankind -- men and women -- can experience this change.

For this, you only need to understand who you are. I will introduce you to your real self so that you understand who you are You are not this body. You are the soul that is immortal. Sanatana Dharma says that liberation is not possible without an enlightened Guru. But liberation is not simple. It is not a toy that the Guru hands you when you meet him.

The Guru only shows you the way and tells you that if you walk on this path you shall reach your goal.
...And the way is chanting of the divine mantra.

In his aphorisms Goswami Tulsidas says that in Kali Yuga one can be freed from suffering only by chanting the divine mantra.
There are many forms of Yoga: Hatha Yoga, Sahaja Yoga, Japa Yoga, Laya Yoga and many others.

The divine mantra that I give (Diksha) belongs to the Siddha Yoga tradition. The mantra giving process in Siddha Yoga is known as Shaktipat Diksha (Conferring energy to disciple).

There are four ways by which the Guru awakens the disciple's Kundalini (Female energy force):

The first is by touching either the third eye (agnya chakra) or the base of the spine (muladhara chakra).
Second is by giving a divine mantra.
Third is by conferring energy by sight.
Fourth is by volition: The disciple takes energy from the Guru without the latter's wish. This happens very rarely. In the past only Eklavya (Hindu mythological character) and Saint Kabir were able to do this.

So, mankind is experiencing a transformation by chanting the divine mantra. This is not some kind of magic or miracle. People pretend to be religious ... They want to show the world how religious they are.

When asked what religion they belong to, these very people say, "We are Hindu."
Then when asked, "What is it like to be a Hindu?" ...Many thoughtful Europeans ask "What is Hinduism?"

So the religious people have no answer. They say that Hinduism means ringing temple bells and performing rituals.
I say a Hindu is a Completely Evolved Human Being. And this being can be of any race or religion. Hinduism speaks of the complete evolution of mankind. Sri Aurobindo has also written: "Man is a transitional being. He is not final but he will be."

Man is an evolutionary being. He is constantly undergoing change. And he will eventually reach a stage where he is completely evolved.
Sri Aurobindo has prophesied that future generations of mankind will have divine bodies. They will attain a divine form. The transformation has already begun.

AIDS and Cancer are being cured, and the scientific community is confused by this development. They have no answer for this. The practice of Siddha Yoga involves chanting of the divine mantra and meditation.

Firstly, the disciple has to chant the mantra given by the Guru round-the-clock. In the science of Japa (chanting) there is a term called "Ajapa Japa." After a few days of continuous chanting, the energy within you will begin chanting the mantra on its own.

A poem by Saint Raidas makes this experience clear. He too experienced Ajapa Jap and found that the mantra was being chanted on its own without any mental effort. In this way, those of you suffering from AIDS, Cancer or any other disease will be freed from your suffering.
Sri Aurobindo had said that two mantras will uplift this country. The first "Vande Matram" (Bow to thee, Motherland) was realized in 1906.
That we are not allowed to say "Vande Mataram" today is a harsh fact. Aurobindo said that the other mantra would be a Sanjeevani Mantra (revitalizing mantra).

The mantra that I give during Diksha is a Sanjeevani Mantra.
Let me first explain what the Sanjeevani is. In the mythological epic Ramayana,
Lakshamana was struck by a poisonous arrow and he was near dead. Hanuman brought the Sanjeevani herb. When the herb was administered to Lakshamana he became conscious. The Sanjeevani worked only because Lakshamana had life left in him.

Whatever diseases you may have, whether it is AIDS, Cancer, Hepatitis B, Leukemia etc
...And if medical science has said that it is incurable
...In such a scenario, once you receive this mantra you will not die.

In the year 2000 an AIDS case was brought forward to me. The patient's name was Bhanwarlal. He was a patient in Mathuradas Mathur Hospital in Jodhpur. He was taken off the drip and doctors asked his family to him back home as he had only a few hours to live.
Someone told Bhanwarlal's younger brother that a Guru says that all kinds of diseases can be cured.

They brought him that Thursday evening to me. Bhanwarlal later told me that he was so physically weak that he couldn't talk, open his eyes or move around. He could only hear and understand what was being said to him. He began chanting the mantra as soon as he received it from me.

Within 3-4 days he regained sufficient physical strength, and today, 7 years later, he is completely healthy. I hope you understand that the sanjeevani mantra is a tradition of Shaktipat Diksha. Sri Aurobindo had said that the sanjeevani mantra is mystic and secret and "not yet revealed."

The mantra that I give has the divine power of Radha and Krishna. It is Krishna's Shakti (spiritual energy) that gives you life.
Krishna is a complete avatar (incarnation of god). Nothing is impossible for him. However, you and I both know that Krishna is being used for commercial means.

Yoga has become a market and it sells rather well. It sells in the west too. Not just in India, but yoga is sold at an expensive rate in the United States of America.

So, you have to continuously chant the mantra that I give you. The other thing that you have to do is meditation.

The philosophy of yoga says that the body (pind) exists in the universe (Brahmand) and the universe exists in the body. If the entire universe exists in the body, then both the positive and negative forces exist within you.

Dr R. K. Choudhary, an oncologist and hospital superintendent in Ajmer, visited me in Bikaner in the year 2000. I asked him why cancer cannot be cured. He said that the scientific community does not yet know where the roots of cancer lie. I told him I had watched a report on BBC that said that certain genes in the body become out of control.
... Some force inspires the cells to commit suicide. In this way, the cells become afraid of the force and obey its orders and begin dying and eventually this results in death. The oncologist agreed with this explanation.

So, listen carefully: The philosophy says that both positive and negative forces are within you. For some reason the negative force overpowers the positive one.
The negative force's tendency is to injure and kill and so it begins its work in a cancer patient. In this same patient if the positive energy becomes powerful and defies the negative force...
...then the cancer will be cured. To this the oncologist said that this may be possible.

So I said that I know that medical science will not readily believe me. After this incident I began telling people to strengthen their positive force and kill the negative one. This war between positive and negative forces or sattavic (enlightened) and tamasic (dark) tendencies has been going on since time immemorial.

Today, negative forces are dominant in the world. A Mr. Bohra from Phalodi came to me. He had Hepatitis B and Leukemia. After 22 days of meditation and chanting the mantra, he said he was completely healthy. When my disciples asked how he was cured, he said here is the Hepatitis B positive report and here I am today completely healthy.

Then they asked him for a negative report, and he said all my money was spent on treatment...
...if you give me Rs 5000 for the test I'll get it done.
Now, I don't take money from people, so how will I give someone money? I said forget it.
He came for the earlier diksha program and gave an interview to the press. But there is still no negative report... He cannot give Rs 5000 nor can I.

Doctors in Mumbai told me that millions of people around the world suffer from this disease.
Just as Hepatitis B is cured, so too, all kinds of diseases will be cured. Those of you suffering from AIDS don't be afraid.
If an AIDS patient chants the mantra I give, he or she will be cured within 45 days. Not one but thousands of patients are cured. I have stopped collecting medical reports.

I already have seven to eight thousand reports from all over the country. When I asked my disciples, who are doctors, to highlight this matter
...they said that they could not afford to threaten their position within the medical community.

AIDS patient Bhanwarlal weighed 144 lbs before he was diagnosed with AIDS. After the disease took control he weighed 102 lbs. After doing meditation and chanting he now weighs 199 lbs.

One of my doctor disciples said that the AIDS patients' condition could be further authenticated if his viral load could be measured.
If the viral load is below 50 then it means AIDS is negative.

Now I don't know what HIV Viral load or CD4 or CD8 is. I'm not a doctor; these terms are used by the medical community.
I started asking patients to check their viral load count. In many the count fell below 20. This means the disease doesn't exist in the body.

In Mumbai a woman's husband died of AIDS in JJ Hospital. After taking the mantra from me and practicing for four to five months, she got herself tested. She was tested thrice.

So she asked the doctor why this was done since the results could be confirmed in a single test.The doctor said that since the woman's husband had died of AIDS, she should have the disease too.But she didn't and that is why they were re-testing her.

The All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) receives reports of AIDS patients cured by Siddha Yoga from all over India.

But the problem is that science does not know what the spirit is. It only knows matter. That is why the government does not know on what basis it can highlight Siddha Yoga.

But the curing of diseases is possible only because I have undergone a transformation. If I had I not been transformed, I would not have been able to give you anything too.

I started chanting the mantra when I was 42. This year on November 24, 2007 I will turn 81.The chanting brought a transformation in me. If I tell you the mantra, that change will happen in you too.
I will not give you anything. Please remember: no one can give you anything. I will show you a method by which the doctor within you can be awakened.

I tell both patients and doctors not to stop taking treatment from the external physical doctor--
I don't ever negate science. Science is a truth but it is yet incomplete. Alexander's guru Aristotle was a great scientist of his time. He said that science is an incomplete philosophy but philosophy is a complete science.

Yoga philosophy is a complete science. Science is only supplementary to this philosophy. I have never protested against science. But I do say that there is a doctor within you.

The internal doctor guides the external one and that is the extent of the latter's knowledge. The internal doctor has yet a lot to give you. I only introduce you to this doctor within you. You will have to develop a friendship with him. This means that you will have to constantly chant the mantra I give you.

The chanting will awaken your Kundalini. Kundalini is externally worshipped as a goddess such as Radha, Amba, Durga, Parvati, and Sita.
The goddess that is referred by these names is known in Yoga as the Kundalini. It lies asleep at the base of the spinal column at the sacrum-- in a three-and-a-half-layer coiled form with the tip of its tail in its mouth.

Through chanting and meditation it awakens and starts rising upwards. It is the earth element and also the mother of the universe -- it rises to meet its master who resides in the crown of the head (sahasrara chakra).

When awakened the kundalini will stand up straight and will attempt to rise upwards. So how can it rise? Only when it is propelled can it rise.

Yoga says that there as five types of vayu (air): Prana, Apana, Udana, Samana and Vyana.
Each of these vayu perform specific tasks in the body. Apana vayu throws out the discharges of the body produced below the navel area.

The Kundalini can rise upwards only when Apana vayu propels it.

Yoga philosophy is completely scientific. Just as a rocket is propelled by combustion of fuel, so too, the Kundalini requires such a force to rise upwards.

In this process the practitioner experiences three types of bandha (locks). All three are formed on their own without any effort on your part.
All you have to do is think of me at the agnya chakra (third eye) and chant the mantra. You don't have to do anything besides this. And if you do not practice this method seriously and do not experience any change, then go to another Guru.

Accepting someone as your Guru is not a formality or something to take lightly. When a Guru gives diksha, you are born again.
After taking diksha if you continue behaving the way you did before then what is the point of accepting the Guru?

However, nowadays the tradition of Gurus has become a profession where they give blessings. Gurudom has become a profession of ill-repute.
When a Guru comes to a venue, people assume that he must be facing a financial crisis and so has come to make money. There is a general consensus among people about this. And the Gurus have become very open about charging fees. There are many kinds of fees: entry fees, different fees for different mantras. It has become a viable market.

In Siddha Yoga, money will have no influence. You cannot make HIV positive into negative by giving a billion dollars. And HIV+ is turning negative in this country.

If both the internal and external doctors work together, no disease is incurable. This mantra is a Sanjeevani mantra, chant it! If you still have life left within you--
whether you have AIDS, Cancer or any other disease -- and if you are not dead and are listening to me -- then you will not die of any disease that doctors have termed incurable.

I'm doing this work for the last 16 years and have seen thousands of people being cured. And one more thing: The message is spreading that Yoga can be done with my photograph.
I have told the scientific community in the US that I may be able to affect people with my presence -- but the photograph is an inanimate object. How is it that people meditate on the photograph and are cured of their disease?

When women in America, thousands of them, meditate on my photograph they experience yogic movements.

I have undergone a rather unique transformation. Let me tell you what this transformation was:
I had to meditate because certain events compelled me to do so. A local soothsayer told me that I was under ‘Markesh Dasha'. I didn't know what ‘Markesh' was. When I asked its meaning I was told that it is a constellation of planets that cast a spell of death.

I asked if it were possible to prevent it and I was told to chant the Gayatri Mantra as a remedy. I chanted the Gayatri mantra 125,000 times and performed a havan (lighting a scared fire) along with it. This created a light within me. Earlier I didn't know what the Gayatri was. But now I know: It is the prayer to invoke and establish divine light within you.

In meditation I saw that there were no organs in my body: no liver, no spleen, no heart, no blood circulation, and no kidney. I thought to myself, "Where did these organs go?" How did this body become a column of light? I asked myself, "One can see the outside world with eyes, how am I able to see what is inside?"

I soon became aware of a buzzing sound, like that of a bumblebee, emanating from the stomach. When I concentrated on the sound I found that the Gayatri mantra was being chanted in the navel instead of the throat. And it was being chanted at an amazingly high speed. I listened to the mantra for a long time. This fantastic vision broke off as suddenly as it had occurred.

The gurgling sound of water suddenly gushing out of an open tap in the bathroom had broken off the meditative state. I tried again several times but didn't see the vision again. I didn't understand what had happened to me.

Some people told me that I had attained a Siddhi (spiritual power). They advised me to make commercial use of it. This made me realize that something special had definitely happened to me.

I felt that selling such a divine power was not the right thing to do. I will not earn money by such means. People still persisted and when I refused they said I was fool for not making money out of this. However, this made me realize that mantras were very powerful.

I then read books by Swami Vivekananda who spoke of the great importance of a Guru. So I accepted Gangainathji from Jamsar as my Guru. Every year his death anniversary is commemorated. This year, on January 3, it will be observed in Jamsar. Whoever wishes to attend  can go.
Whatever I have received has been given to me by Gangainathji. I used to work as a head clerk in railways. Before his death Gangainathji asked me to carry his work forward. So, I took premature retirement -- seven years before I was due to retire.

First I worked for the railways now I work for my Guru. I have merely changed departments. I prayed at my Guru's samadhi (tomb) and asked him to take care of my basic needs; I didn't want any wealth or fame.

This is how I experienced a transformation and all of you can experience it. When you chant the mantra, your kundalini will be awakened and you will experience three types of bandha (lock).
When the kundalini rises above the navel you will experience the second type of bandha: uddiyan bandha. It rises further and reaches the throat.

As soon as it crosses this point, the practitioner experiences the third kind of bandha: jalandhar bandha.

When the Kundalini reaches the top of the spinal column, not many kriyas (movements) can take place here.
This is when the practitioner experiences pranayama (breath movements).

Nowadays yoga gurus teach pranayama as the first step of Yoga. But pranayama is the last kriya not first. When the Kundalini rises above the agnya chakra (third eye) the practitioner experiences the state of samadhi (non-dualistic state of consciousness).

One cannot know the secret of death unless he experiences Samadhi. If your knee hurts, all your attention will be directed only toward your pain. There is no question of the Kundalini rising above the agnya chakra (third eye). I belong to the Nath tradition and the nine Gurus of this sect are immortal.

Macchindra Nath was the foremost of all Gurus of Kali yuga. In reference to Yoga he has likened the Vedas to the Kalpataru (mythical wish-fulfilling tree) -- and said that Yoga is an immortal fruit of this tree.

Yoga frees the practitioner from three major types of disease: physical disease, mental disease and spiritual disease.

Doctors are able to tackle physical and mental disease but spiritual disease is out of their realm of experience.

I have stated clearly in the west that humanity's problems can be solved only when matter and spirit are used together. In this manner, all kinds of physical diseases such as arthritis, asthma, diabetes and many others will be cured without medicine -- when you undergo yogic movements during meditation.

Many people ask whether they should continue taking medicines (drugs) or not. My experience over the 10 years has shown me that when you take medicines and meditate, your faith is divided. In such as a case the disease may take longer to be cured, even three to four months.
If you only chant the mantra and don't take any medication, you will be cured in 45 days. And many are cured.
Of course, this depends on the patient's physical strength. If he is extremely weak and can't move about, then he may continue taking medication. But if he has sufficient strength to move around, then he does not need to take medication.

Whatever may be the disease, this sanjeevani mantra cures everything. You will not die of this disease.
I've put forward this fact as a challenge for the last 10 to 15 years. But the condition for being completely cured is that you have to accept me as a Guru.

If I hadn't accepted Gangainathji as my Guru none of this would have happened to me. All this is happening because of his grace.
Sri Aurobindo has said that the Guru gives mantra from the Vedas, Upanishad or the name of God.

When the Guru does so, it is his voice that has a powerful effect. Those of you who have come here for the first time, don't understand how all this will happen.

This voice that you are listening to is coming out of an enlightened body not an ordinary one. Of course the enlightenment happened because of samskaras (imprints) of past lives.

In 1984 I attained Krishna's siddhi (power). So this way I attained two siddhis (powers) -- Gayatri (female divine) and Krishna (male divine).
Our philosophy says that there are two ways to realize the self.

One way is to take diksha from a sanyasi (ascetic) and chant a mantra. The other is by going to temples such as Krishna's and performing rituals. By both these methods practitioners attain moksha.

For moksha the practitioner has to ascend toward his master who resides at the crown of the head (sahasrara chakra).

Sri Aurobindo has said that if a man evolves to a state where he attains these two siddhis: Gayatri and Krishna --
in one physical body and in that very life, then this indicates the freedom of all of mankind from suffering. If one can attain this state, then all of mankind can attain it. All of you can be like me.

This is not a miracle or wonder. You may be astonished because this has never happened before. But it has happened to an ordinary person like me who has no substantial material means.

In today's world money is all powerful. But if diseases could be cured by material wealth, America would've cured all kinds of diseases long ago.
Why are people coming to me? Lots of people are coming from Mumbai and Gujarat. The whole of the country goes to Mumbai for treatment but those very people are coming to me. This is because I have conducted a lot of programs in Mumbai.

So, you have to chant the mantra and when you meditate you will experience yogic kriyas (movements). These movements in turn will cure all kinds of physical diseases.

There is a disease called thyroidism. It is cured by the meditation in seven to eight days. Otherwise the patient has to take medication all his life and visit the doctor two to three times each month.

The patient has to consume different doses of medication. With the meditation, the medication can be stopped in seven to eight days.
Thyroidism is of two kinds: hyper and hypo.
The curing is not a miracle. This progress is due in mankind. The Rig-Veda says that the body is composed of seven types of sheaths (kosha) --
the soul (atman) pervades all seven sheaths. The Vedic sages explain the function of each sheath.
They begin with matter:
Annamaya kosha is composed of food stuff.
The second is Pranamaya Kosha (air-apparent sheath) then Manomaya Kosha (mind-stuff-apparent sheath)
then Vigyanamaya Kosha (wisdom-apparent sheath). The west has highly developed the Vigyanamaya Kosha.
I went to America to inform people that science (Vigyanamaya kosha) is not the ultimate of human progress. The next three kosha will be awakened in mankind. These are Sat (Being), Chit (Becoming) and Ananda (Bliss).

This is what we commonly refer to as Sachidananda. Lord Sri Krishna was referred to as Sachidananda.

The mantra diksha that I give is of his name, it is in the name of Radha-Krishna. When humanity will evolve through Siddha Yoga, no disease will be incurable. I'm doing this practically. First I only told people about it but people don't do what they are told to do.

So, I have stopped telling people and am showing practical results. Experiment with it and the results will be obvious. You will not be charged a single penny and AIDS, Cancer and other diseases will be cured.

The only condition is that you will have to accept me as your Guru and not add to or alter the mantra in any way. Some people add 'Om' at the beginning or 'Namaha' at the end of the mantra, this is not done.

Adi Guru (Fore most Guru) Shankaracharya spoke of Advaita (non-dualistic) philosophy and practically proved its principles.
Do you know what Advaita philosophy is? It means that two entities don't exist. There is only one eternal being who resides within you and all of mankind.

This is Advaita philosophy that I'm manifesting in the world. Adi Guru Shankaracharya had already proved this --
but our culture experienced a period of degeneration and that is why this knowledge was lost. But now this knowledge has resurfaced and will spread through the world.

So, the last three sheaths will be evolved. Keeping this turn of evolution in mind, Sri Aurobindo had said that the future generation of mankind will attain divine bodily-form.
In this way, all kinds of physical disease will be cured by Siddha Yoga without medication.

The other kind of disease is mental disease. 80 per cent diseases are caused by psychological disorders or by stress.

There is no medication to cure stress. All doctors can prescribe are sedatives that have an effect for four to six hours and
after it wears off the stress is back. Doctors are not able to get rid of stress.

Sedatives are actually intoxicants and are a temporary treatment. While we agree that it is so, the intoxication should not be caused by matter but by spirit.

The mantra that I give, which is in the name of Krishna, will begin to give you joy. Indian mystics and saints have referred to this joy as "naam khumari" (intoxication by chanting).
Guru Nanak has said that intoxication by drugs wears off the next morning but intoxication by chanting never wears off.

Another Indian saint, Kabir, has said that intoxication by chanting does not wear off-- Instead, the intoxicating joy it gives grows every day.

In the Bhagwad Geeta, Lord Sri Krishna has referred to this ananda (joy) as divine ananda, eternal ananda --
infinite ananda, unique ananda, unparalleled ananda and ananda produced by meditation on God.

There are five shloka (poetic verse) in the Geeta about this:
The 21st shloka in the fifth chapter and four shloka from the sixth chapter -- 15, 21, 27, 28.
So, intoxication by medication wears off and intoxication by chanting the mantra does not. This is why diseases and illnesses caused by stress are being cured by the intoxication brought on by chanting.

Yogic Kriyas (exercises) caused by the awakening of Kundalini, cure the body of all kinds of diseases. First your body will assume an asana (posture) and then you will experience bandha (locks) and then the Kundalini will ascend to the agnya chakra (third eye) and when it reaches the crown of the head (sahasrara chakra).

the practitioner will experience samadhi (non-dualistic state of consciousness). For freedom from all kinds of diseases it is important for the practitioner to experience samadhi.

However, nowadays yoga teachers train students to perform these yoga postures and movements. If exercise has to done, then physiotherapists are doing a better job than these yoga teachers.

So in this way all kinds of mental and physical diseases are cured and one also gets freedom from addiction.
The west is troubled by its dependency on drugs. They say to me, "We don't fear God. But we do fear heroin. It will be the end of us; we can't rid ourselves of it."
Many people are not able to free themselves from addiction to opium, cigarette and alcohol.

But Siddha Yoga frees a person from addictions in a few days. Freedom from addiction is brought about by a change in vritti (tendencies).
The human body is composed of three tendencies: tamas (darkness), rajas (dim or colored), sattva (pure or lighted).

The tamasic tendency demands the consumption of drugs, meat, alcohol etc. Science cannot put an end to this demand. It tries to forcibly stop the consumption.
In the tug-of-war between the addict and science, the addict falls prey to disease. For instance, if you suddenly stop the dosage of an opium addict, he will surely die.

In the village of Kirada in the city of Hissar, Haryana state a man would inject himself with 10 to 12 shots of heroin every day.
When his family found out, they took him to the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) for treatment.

Doctors there told the family that he was in such a critical condition that if they forcibly took him off the heroin, he would die in 10 days.
If they didn't do this, he had a chance of surviving for the next two years.

He came to me, and within five to six days his addiction came to an end. Today he is alive and healthy.

Doctors say that according to the principles of medical science he should be dead. But he is alive!

He is in the agricultural sector and drives a tractor. So why did this happen?

Science cannot change vrittis (tendencies).

When Swami Vivekananda was delivering a speech in America, a man asked him how Americans could practice Yoga
since yoga philosophy is known to require the practitioner to be vegetarian and non-alcoholic -- and most Americans were meat-eaters and also consumed alcohol.

Swami Vivekananda answered, "You need not give up the things, the things will give you up."

Many saints sermonize on the vices of eating meat or drinking alcohol -- But does anyone pay them heed? Then why should anyone listen to me? I say don't quit using the substance you are addicted to.
If you drink alcohol, and drink one pint a day, start drinking one and a half from today. Yes! I say that as a challenge! But on the condition that you also chant the mantra.

Chanting and addiction cannot exist together, one has to leave. Thousands have been freed from addiction. I have lost count, it could be millions.
In Barmer city many were freed from addiction just by meditating on my photograph. The scientific community is troubled because it cannot understand how my photograph is having such an effect. I underwent a transformation, that too without desiring it. I didn't want to be what I am today.

I was just like you, a materialistic man with an ego. In this way, you are freed from addiction, cured of physical disease and mental illnesses.
And when this happens, you at least have material happiness.

Lord Krishna has said in the Bhagwad Geeta (Chapter 4):
"Whenever righteousness falls and unrighteousness grows, the Almighty reveals His
presence! The Supreme though unborn and undying, becomes manifest in human form to overthrow the forces
of ignorance and selfishness."

That period is here that Krishna speaks of.

All religions in the world today are in the same fallen state. This includes Hinduism too!

I went to Israel; Jews are in a state of loss. In America too, people are in this very state. Everywhere the same thing is being said in terms of religion: "Look what great deeds Christ, Moses, Mohammed performed."
And Hindus say, "How great Ram, Krishna and Buddha were." Everyone urges you to look at the past. You are looking back at the past and surging ahead...your are bound to stumble and fall into the pit in front of you.

Not one talks about the future. There is only death in the future. And no one knows what death is.

No one knows anything about what lies ahead in time. All religions in the world are stumbling and falling. All those who talk about Patanjali Yoga philosophy forget to mention that in third chapter of Patanjali Yoga Sutra called "Vibhuti (Powers) Paad"
Patanjali has said the practitioner attains "Pratibha Gyana" (intuitive knowledge). With this knowledge he / she attains six types of siddhis (powers).

By attaining the first siddhi the practitioner, during meditation or in a state of Samadhi, is able to see and hear events from unlimited past and future. He can see and hear through the third eye.
Only when the third eye, also known as the tenth door, opens will yoga and meditation take place nothing can happen without it. That is why the practitioner has to concentrate on the Guru's image at the third eye.

The Guru (divine force) arrests the mind. The Guru is a gravitational force. This body is not the Guru. This body will die in a few years. The Guru is within you.
The science of yoga does not value time and space. I am within you and you are within me. Whenever and wherever you remember me, I'll be present. If a Guru is a true Guru, then he is omnipresent.

But if the Guru is a professional one, then he will give you blessings will keep whatever you have offered him and will be happy with this.
Nowadays this does happen; even fees are taken from seekers. When the first AIDS person was cured, I challenged the west to take
a billion dollars and cure someone with HIV / AIDS. But patients are cured for free by doing this meditation.

So, when you meditate you will be able to see and hear unlimited past and future. Even science accepts that when a sound is released, it is never destroyed. It exists in the universe... you only need the right kind of instrument to latch on to its vibration. Yoga philosophy says that if there is the word and its sound then there must be the speaker too...

yoga says that it is possible to see and hear this speaker talk. Just as scenes from a cricket match are replayed on TV in the same way scenes from the past are replayed to the practitioner during meditation. But done is done.

What has happened, for example in the Mahabharata, cannot be undone. But the practitioner can know for sure what will happen in the future.
This is an open challenge for science! But they are not accepting this challenge. The west very proudly claims, "Science is God." In America I said absolutely wrong! "God is Science."

They didn't respond to that. God created man, and man attained knowledge of science much later. And then man made science his God! Then why can't your "God" (science) cure diseases?

Our God (Yoga) is curing all kinds of diseases. During meditation in a vision of the future you may see the death of many of your acquaintances.
The one who is born has to die. Whether at the age of 20, 30, 50 or 100. You all know that death is inevitable; there is no way to escape it...
then why fear death? Maya (illusion of duality) has made death so frightening that no one wants to accept its reality.

But death does not spare anyone. The meditation and chanting will break the spell that Maya has cast over you... ...and the mystery of death will be revealed to you.

And when this happens, you will begin to see death as a boon given by God to free you from the cycle of life and death. Then you will await death and accept it without any fear.
Saint Kabir has said in poem that he welcomes with joy that death which the whole world fears and awaits his death so that he can finally attain liberation.

You will reach this state of consciousness in this very life irrespective of your caste, creed or religion. Kashmiri Shaivism talks about the evolution of all mankind.
I'm bringing about a realization of this philosophy. Once you attain intuitive knowledge you will foresee the death of many of your acquaintances and they will die in exactly the way you saw them dying during meditation.

If one dies in the way you saw it, you may pass it off as mere coincidence but when many of them die in the way you saw during meditation...
then a thought will cross your mind, "I'm not immortal, I will die too."

Then you will see how you will die and at your approximate age when death will come. When you see your own death you will be afraid.
Until now you have seen only others' death and you don't care much about that! And when you see your own death, all your actions, both good and bad, will flash before your eyes.

You can hide things from the world but you can never hide the truth from yourself. And then you will sincerely pray to God, "Oh God, I know you are kind, I have heard you are very kind...
I have made many mistakes, I was a fool. Please forgive me this one time; I will not repeat this mistake again." Then with all his concentration, the practitioner prays to God.

Then his gaze is turned inward and he realizes that the whole universe is within him... and if the universe is within him, the creator of the universe is within him too.

He will realize the divine within him. And realizing the divine means freedom from the cycle of life and death. This is my objective. My objective is not disease. I have never said that I cure diseases.

Diseases are cured by the divine force within you. But you are getting yourself treated by doctors. Once you connect with the force within you, see how quickly you will be cured. And a lot of people are cured, that is why they are coming here from all corners of the country.

Saint Kabir has compared the body to an earthen pot filled with water. This pot is immersed in water. So, there is water in the pot and also outside it.

The clay of the earthen pot begins to disintegrate little by little And soon the pot crumbles completely. As soon as the pot crumbles, the water in the pot and outside it becomes one.
This body that you value so much is nothing but a pot that will crumble after a while. If you want to be liberated from this cycle of life and death,
you must meditate and chant the mantra all the time. Don't stop chanting, it is the key to liberation.

Only when you experience the intoxicating joy of chanting… Will you also be able to experience deep meditation. Chant the mantra all the time – when you are working, eating, going to the toilet, bathing etc. There are no restrictions.

One important thing though: if you chant this mantra aloud you will have to perform all sorts of rituals along with it. Silent chanting does not require any sort of rituals; anyone can do it.

So, this is a practice that can bring about a great change in your life. Now I will give you the mantra. Before I give it, I will first explain some principles about the mantra.

Sri Aurobindo has said that only the mantra given by a Guru has an effect. The mantra uttered by the Guru works. Reading a mantra in a book will not have any effect. Sri Aurobindo has called the mantra "secret" and "mystic."

Only by chanting God's name can all your problems come to an end. Someone who has never chanted God's name should not preach about God. I chanted the mantra out of necessity.

Circumstances forced me to chant and that has brought me here today.

It is my Guru's command to not turn anyone away empty-handed. But to receive grace you must be an open instrument… If you close yourself, you will not receive anything. Also important is your surrender to the Guru. He does not want anything else from you.

I have said that my voice is transformed. I will tell you what that means. Swami Vivekananda was once asked to give a speech in America.
In his past speeches in America he had spoken all that he had read in books. In this speech he didn't know what to say as he had spoken all that he knew.

Nonetheless he stood on the stage and began speaking. After the speech ended he said that he didn't know what he had spoken that day.
But the applause was louder than what he had received for all the other speeches. He then said that "I was under the false belief that I was speaking… but in truth, it was my Guru Ramakrishna Paramhansa  speaking through me."

Unlike Vivekananda I don't have any such false belief. I know I'm not speaking. It is my Guru, Gangainathji, who speaks. I'm just a microphone for him.

This is his voice, not mine – and that is the truth! I will tell you the mantra now.
Those of you from the press please do not publish the mantra.















May you live a long and healthy life!

Siddha Yoga In Short:
Anyoneof any religion, creed, color, country
Anytimemorning, noon, evening, night
Any duration5, 10, 12, 15, 30 minutes. For as much time as you like.
Anywhereoffice, hosme, bus, train
Anyplaceon chair, bed, floor, sofa
Any positioncross-legged, lying down, sitting on chair
Any agechild, young, middle-aged, old
Any diseasephysical, mental and freedom from any kind of addiction
Any stressrelated to family, business, work

More info at -
http://www.the-comforter.org/

or
Watch Zee News Channel 6.30 A.M.-7.00 A.M.(Every Thursday)

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